Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 13
________________ 12 पुस्तक में दृष्टिक्षेप करता हूँ, तब उन्होंने जो विषयानुक्रम एवं अन्यान्य महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ अपने उस सम्पादन में दी है, उन्हें देखकर इस सम्पादन की अपूर्णताओं का मुझे बोध होता है / चूँकि मैं आकस्मिक ही इस प्रकल्प के साथ जुड़ गया हूँ, और मेरे मनमें 'वाचना का शोधन ही मुख्य है' ऐसी धारणा बन गई थी, अतः इन अपूर्णताओं के प्रति मेरा ध्यान ही नहि गया / आगे के विभागों में इन बातों के प्रति भी ध्यान देने का प्रयत्न किया जाएगा / इस ग्रन्थ के बारे में मेरी स्थिति, "किसी की आधी रसोई किसी को पूरी करनी है' ऐसी है। परिशिष्ट में गाथाओं का अकारादिक्रम दिया गया है। विषयानुक्रम विस्तार से न देकर, बृहत्कल्प-वृत्ति के विषयक्रम के आधार पर, संक्षेप में ही दिया जाता है / मैंने जो वाचन किया, उसमें मेरे साथी साधु मुनि विमलकीर्तिविजयजी, मुनि कल्याणकीर्तिविजयजी एवं मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजयजी ने मुझे पूरी सहायता दी है। उन तीनों को साधुवाद / यहाँ इस प्रथम विभाग में पीठिका-अंश ही समाविष्ट किया गया है / आगे दूसरे विभाग में उद्देशक, चूर्णि, विशेषचूर्णि - इन सबका संकलन होगा / यथावकाश वे विभाग जैसे जैसे तैयार होते जाएँगे, वैसे वैसे उनका प्रकाशन भी होता जाएगा / एक बात स्पष्ट होनी चाहिए :- चूर्णि एवं विशेष चूणि की पूरी की पूरी प्रेसकॉपी पं० पगारियाजी ने स्वयं लिखी है। इसका प्रथम प्रूफ भी उन्होंने देखा है। यह पूरा प्रकल्प उन्हीं की भावना व मेहनत का फल है। 84 साल की आयु में भी आगमों के प्रति इतनी भक्ति, सम्पादन कार्य की ऐसी लगन, सब दुर्लभ व विरल है। ताडपत्र-प्रतियों की झेरोक्ष कॉपी प्राप्त करने के लिये भी उन्होंने काफी परिश्रम किया है / हम तो उनके बने-बनाये कार्यक्रम में अकस्मात् ही सामिल हो गये हैं। फिर भी अब पूरे चूर्णिग्रन्थ को पुनः संशोधित करने की जिम्मेवारी हमने उठा ली है, और उम्र के कारण वे अब हमें यह सौंप कर निश्चिन्त बने हैं / उनका परिश्रम निःशंक साधुवादार्ह है। ___ इस ग्रन्थश्रेणि के प्रकाशनार्थ आर्थिक सहयोग देनेवाले जैन संघ एवं सद्गृहस्थों को धन्यवाद / पुनः- इस सम्पादन में ग्रन्थकार एवं श्रुतधर भगवन्तों के आशय से विरुद्ध या विपरीत कुछ भी, अनजान में ही, आ गया हो, तो एतदर्थ त्रिकरण योग से क्षमाप्रार्थना करता हूँ / छद्मस्थता एवं मन्दमति के वजह से ऐसा होना असम्भव नहीं / अगर किसी को ऐसी कोई त्रुटि दिखाई पड़े, तो कृपया हमें सूचित करें यही अभ्यर्थना / सं० 2064, श्रावणी पूर्णिमा - शीलचन्द्रविजय __ अहमदाबाद हठीसिंह केसरीसिंहनी वाडी-उपाश्रय

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