Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Bhagubhai Panachand Jhaveri
Publisher: Bhagubhai Panachand Jhaveri

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ (३७ए) निवारण कारणेरे, परावरतन कीधो सार नवि०॥४॥राज्य पामीने प्रनुजी थापिनेरे, लोक तणोव्यवहार, जरतादिक सो पुत्रने सीखवीरे, वहुत्तरकला मनुहार नवि० // 5 // ब्राह्मी सुंदरी बिहुँ कन्यांनणारे, लिखनकला विस्तार, आजीविकाना कारण सीखव्यारे, शिल्प कर्मादिक सार, नयि // 6 // जरतादिकने राज देश्नेरे, प्रन्नु लीनो संजमनार, वरसीतपपारणो आखातीजनेरे, करावे श्रेयांस कुमार नवि० // 7 // केवलपामी संघथापना करीरे, अष्टापद गिरिश, दशसहसमुनिवर परिवारसुंरे, शिवरमणीवस्या जगदीश नविन // // जरतादिक सो पुत्रो पामीयारे, सिव बधुकेरो साथ, स्थविरतणो चरित्र सांजलीरे, पामो सुकृत आश्र, नवि० // ए॥ शुल उगणीसे सितोत्तर समेरे, वमोदे कीधचोमास, कीनीरचनारलियायतथयारे, पजुषणनी जास जवि० // 17 // श्रीखरतरगण जगमां दीपतोरे, ज्ञानादिगुणमणिखाण, श्रीजिनकृपाचंजसूरिसेवो सदारे, पर्वए जिनवरणवाण नवि० // 11 // इति तीजनी सकाय // संपूर्णा // // त्रिशलाना जायारे महावीर अमधर आवजो ए देशी॥ सशुरु म्हारारे मोहन गारारे, वीनती सांजलो, सांजलीने गुरु करो सेवकप्रतिपाल, स० बिरुद घणेरारे निसुण्या तुमतणा, तुमगे प्रनु आतमना रखवाल, स० // 1 // जिनसा सन जगमां जयो, सर्वजीव सुखकार, जंगम सुरतरु प्रगटीयो, ससुरु तारणहार, तुमगे गुरु सबजनने सुखयाल // स०

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418