Book Title: Bramhacharya Vaigyanik Vishleshan
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 3
________________ 6. पूर्व की गृहस्थावास में की गई कामक्रीडा के स्मरण का त्याग करना। 7. प्रणीत आहार अर्थात् अतिस्निग्ध, पौष्टिक, तामसिक, विकारक आहार का त्याग करना | 8. रुक्ष अर्थात् लुख्खा, सुक्का आहार भी ज्यादा प्रमाण में नहीं लेना । 9. केश, रोम, नख इत्यादि को आकर्षक व कलात्मक ढंग से नहीं काटना । स्नान विलेपन का त्याग करना । शरीर को सुशोभित नहीं करना। स्वामिनारायण संप्रदाय में भी ब्रह्मचर्य का बहुत माहात्म्य है । उस संप्रदाय के निष्कुलानंदजी ने तो उपर्युक्त ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ के संबंध में एक काव्य/पद भी बनाया है और उसमें उसका महिमा बतायी है | ऊपर बतायी हयी ब्रह्मचर्य की नौ बाड़ पूर्णतः वैज्ञानिक है । उसका वैज्ञानिक विश्लेषण इस प्रकार दिया जा सकता है । __ ब्रह्मचर्य की प्रथम मर्यादा के अनुसार साधु को स्त्री, नपुंसक व पशु-पक्षी | आदि से मुक्त आवास में रहना चाहिये । प्रत्येक जीव में सूक्ष्मस्तर पर विधुदशक्ति होती है । उदाहरण के रूप में समुद्र में इलेक्ट्रिक इल नामक मछली होती है । उसके विद्युद्प्रवाह का हमें अनुभव होता है । जहाँ विद्युद्शक्ति होती है वहाँ चुंबकीय शक्ति भी होती है । इस प्रकार हम सब में जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति है । अतः सब को अपना विद्युचुंबकीय क्षेत्र भी होता है । चुंबकत्व के नियम के अनुसार पास में आये हुए समान ध्रुवों के बीच अपाकर्षण और असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है । स्त्री व पुरुष में चुंबकीय ध्रुव परस्पर विरुद्ध होते हैं अतः उन दोनों के बीच आकर्षण होता है । अतः ब्रह्मचर्य के पालन करने वाले पुरुष को स्त्री, नपुंसक व पशु-पक्षी रहित स्थान में रहना चाहिये । __ ब्रह्मचर्य की दूसरी बाड़ / मर्यादा के अनुसार अकेले पुरुष को अकेली स्त्री से धर्मकथा भी नहीं कहनी चाहिये तथा पुरुष को स्त्री संबंधी व स्त्री | को पुरुष संबंधी बातों का त्याग करना चाहिये । जब अकेला पुरुष अकेली स्त्री से बात करता है तब दोनों परस्पर एक दूसरे के सामने देखते हैं और ऊपर बताया उसी प्रकार स्त्री व पुरुष में चुंबकीय ध्रुव परस्पर विरुद्ध होने |से परस्पर सामने देखने से दोनों की आँखों में से निकलती हुयी चुंबकीय | रेखाएँ एक हो जाने से चुंबकीय क्षेत्र भी एक हो जाता है । परिणामतः 56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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