Book Title: Bramhacharya Vaigyanik Vishleshan Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 2
________________ हमारे खून में स्थित जातिय रसों यानि कि होर्मोन्स की प्रचुरता के आधार पर हमारा यौवन टिका रहता है । जब ये अंतःस्रावि ग्रंथियाँ जातिय रस | कम उत्पन्न करने लगती हैं तब हमें वृद्धत्व व अशक्ति का अनुभव होने लगता है । ब्रह्मचर्य का शारीरिक, मानसिक व वाचिक वैसे तीनों प्रकार से पालन न होने पर पुरुष व स्त्री दोनों के शरीर में से सेक्स होर्मोन्स बाहर निकल जाते हैं । ये सेक्स होर्मोन्स ज्यादातर लेसीथीन, फॉस्फरस, नाइट्रोजन व आयोडीन जैसे जीवन जरूरी तत्त्वों से बने हैं । अंतिम अनुसंधानों के अनुसार लेसीथीन नामक तत्त्व मस्तिष्क का पौष्टिक आहार है । पागल मनुष्यों के खून में लेसीथीन बहुत कम पाया गया । उनकी पूर्वावस्था का | अध्ययन करने पर मालुम पड़ा कि उनमें से बहुत से आदमी अपनी | युवावस्था में ही बहुत प्रमाण में अनाचार करते थे । · तो क्या आज भोग-विलास से भरपूर युग में मन, वचन, काया से पूर्णतः ब्रह्मचर्य का पालन संभव है ? उनका उत्तर बहुत से लोग " ना में देंगे | किन्तु मेरी दृष्टि से प्राचीन आचार्य व महर्षियों द्वारा निर्दिष्ट ब्रह्मचर्य की नौ बाड़ अर्थात् नियम या मर्यादाओं का यथार्थ रूप से पूर्णतया पालन किया | जाय तो ब्रह्मचर्य का संपूर्ण पालन सरल व स्वाभाविक हो सकता है । जैन धर्मग्रंथों के अनुसार वे इस प्रकार हैं :-- 1. स्त्री (पुरुष) व नपुंसक से मुक्त आवास में रहना । 2. अकेले पुरुष द्वारा अकेली स्त्री को स्त्रियों को धर्मकथा भी नहीं कहना और पुरुषों को स्त्री संबंधी व स्त्रियों को पुरुष संबंधी कथा / बातों का त्याग करना । 3. स्त्री के साथ पुरुष को एक आसन ऊपर नहीं बैठना और स्त्री द्वारा उपयोग किये गये आसन पर पुरुष को दो घडी / 48 मिनिट तथा पुरुष द्वारा उपयोग किये गये आसन पर स्त्री को एक प्रहर/तीन घंटे तक नहीं बैठना चाहिये | 4. स्त्री द्वारा पुरुष के और पुरुष द्वारा स्त्री के नेत्र, मुख इत्यादि अंगों को स्थिर दृष्टि से नहीं देखना । 5. जहाँ केवल एक ही दीवाल आदि के व्यवधान में स्थित स्त्री-पुरुष की काम-क्रीडा के शब्द सुनायी पड़ते हों ऐसे " कुड्यन्तर " का त्याग करना । . Jain Education International 55 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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