Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ भूमिका काव्य-रचना, व्याकरण, न्यायशास्त्र, सिद्धांत, बीज-शास्त्र, ज्योतिष-विद्या में निपुण अनेक आचार्य होते हैं, किन्तु चारित्र में निपुण हों, वैसे आचार्य विरले ही होते हैं।' ___ आचार्य भिक्षु उन विरले आचार्यों में थे। उन्होंने चारित्र-शुद्धि को उतना महत्त्व दिया जितना देना चाहिए। ज्ञान, दर्शन और चारित्र-इन तीनों की आराधना ही मुक्ति का मार्ग है। परन्तु परिस्थितिवश किसी एक को प्रधान और दूसरों को गौण करने की स्थिति आ जाती है। आचार्य भिक्षु ने ऐसा नहीं किया। वे जीवन-भर ज्ञान की आराधना में निरत रहे और उनका चारित्र-शुद्धि का घोष ज्ञान-शून्य नहीं था। जैन परम्परा में चारित्रिक शिथिलता का पहला सूत्रपात आर्य सुहस्ती के समय में होता है। उसका कारण राज्याश्रय बना। सम्राट् सम्प्रति के संकेतानुसार सब लोग साधुओं को यथेष्ट भिक्षा देने लगे। भिक्षा की सुगमता देख महागिरि ने आर्य सुहस्ती से पूछा। यथेष्ट उत्तर न मिलने पर उन्होंने आचार्य सुहस्ती से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। धर्मानन्द कोसम्बी ने बौद्ध धर्म के पतन का एक कारण राज्याश्रय माना है-“श्रमण संस्कृति में जो दोष आए, उनका मुख्य कारण, उसे राज्याश्रय मिलना रहा होगा। बुद्ध ने अपनी छोटी जमींदारी छोड़कर संन्यास १. सूक्तिमुक्तावली, ५० केचित्काव्यकलाकलापकुशलाः केचिच्च सल्लक्षणाः, केचित्तर्कवितर्कतत्त्वनिपुणाः केचिच्च सैद्धांतिकाः । केचिन्निस्तुषबीजशास्त्रनिरता ज्योतिर्विदो भूरयः, चारित्रैकविलासवासभवनाः स्वल्पाः पुनः सूरयः ॥ २. बृहत्कल्पचूर्णि, उ. १।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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