Book Title: Bhed me Chipa Abhed
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ आशीर्वचन योगक्षेम वर्ष का अपूर्व अवसर । प्रज्ञा जागरण और व्यक्तित्व निर्माण का महान् लक्ष्य । लक्ष्य की पूर्ति के बहुआयामी साधन - प्रवचन, प्रशिक्षण और प्रयोग। प्रवचन के प्रत्येक विषय का पूर्व निर्धारण | अध्यात्म और विज्ञान को एक साथ समझने और जीने की अभीप्सा । समस्या एक ही थी - प्रशिक्षु व्यक्तियों के विभिन्न स्तर । एक ओर अध्यात्म तथा विज्ञान का क, ख, ग नहीं जानने वाले दूसरी ओर अध्यात्म के गूढ रहस्यों के जिज्ञासु । दोनों प्रकार के श्रोताओं को उनकी क्षमता के अनुरूप लाभान्वित करना कठिन प्रतीत हो रहा था । चिन्तन यहीं आकर अटक रहा था कि उनको किस शैली में कैसी सामग्री परोसी जाए? नए तथ्यों को नई रोशनी में देखने की जितनी प्रासंगिकता होती है, परम्परित मूल्यों की नए परिवेश में प्रस्तुति उतनी ही आवश्यक है। न्यायशास्त्र का अध्ययन करते समय देहली दीपक न्याय और डमरुक मणि न्याय के बारे में पढ़ा था । दहलीज पर रखा हुआ दीपक कक्ष के भीतर और बाहर को एक साथ आलोकित कर देता है । डमरू का एक ही मनका उसे दोनों ओर से बजा देता है। इसी प्रकार वक्तृत्व कला में कुशल वाग्मी अपनी प्रवचनधाराओं से जनसाधारण और विद्वान्- दोनों को अभिष्णात कर सकते हैं, यदि उनमें पूरी ग्रहणशीलता हो । योगक्षेम वर्ष की पहली उपलब्धि है - प्रवचन की ऐसी शैली का आविष्कार, जो न सरल है और न जटिल है। जिसमें उच्चस्तरीय ज्ञान की न्यूनता नहीं है और प्राथमिक ज्ञान का अभाव नहीं है । जो निश्चय का स्पर्श करने वाली है तो व्यवहार के शिखर को छूने वाली भी है। इस शैली को . आविष्कृत या स्वीकृत करने का श्रेय है 'युवाचार्य महाप्रज्ञ' को । योगक्षेम वर्ष की प्रवचनमाला उक्त वैशिष्ट्य से अनुप्राणित है। इसकी उपयोगिता योगक्षेम वर्ष के बाद भी रहेगी, इस बात को ध्यान में रखकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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