Book Title: Bhavsthiti Stavan Author(s): Kantilal B Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ July-2004 45 वरस सहस बावीस एह तणी, स्थिति उत्कृष्टी प्रवचनि भणी, इम अकेकी कांइ भम्यु, काल असंख अनंतु गम्यु. (ढाल) हवि बे दी तणुंअ आय, बार वरस प्रमाण, एगणा पन्नास, दिवस ते दी माण, चउरिंदी छम्मास, आय पंचिंदी जाणु, बिहुं भेदे असन्नी, सन्नी तिरियंच वखाणु. असन्नि जलचारी जीव मल्यादिक केरी, पूव्व कोडि एक स्थिति कही उत्कृष्ट भलेरी, थलचर तिरि असन्नी जेह मँई ऊपरि चालइ, वरस सहस चउरासी आय पूरुं इम माहलइ. खचर असन्त्री तिरिय पंखी पंखाला जेह, वरस सहस बिहुत्तिरि आय उत्कृष्ट तेह, उरपरिसर्प असन्नि जेह हईई करी हीडई, वरस सहस त्रिपन्न आय पूरी भव छंडई. भुजपरिसम्र असन्नी जेह नकुलादिक जाणउं, वरस बइतालीस सहस आय उत्कृष्ट अj, हविं सन्नी गर्भिज कहुं जलचारी केलं, उर-भुजचारी सर्प- पूव्व कोडि भलेलं. गर्भ चतुष्पद महिषी महिष वृषभादिक सोइ, सुहम पल्योपम वण्णि आय उत्कृष्ट होइ, गर्भज पखी तणुंय पल्य असंख्यातमु भाग, आय उत्कृष्टु तिरि तणुं बोल्युं लही लाग. बि-ति-चउरंगी असन्त्री सन्नि अपज्जत्ता केरी, गुरु-लहु अंतमुहुत्त एक स्थिति कहीय भलेरी, पज्जत्ता एहां तणी लहु एह ज मान, हवइं गर्भज मानुष तणुं सुणयो सावधान. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9