Book Title: Bhavsthiti Stavan
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ 50 अनुसंधान-२८ ज्ञानावरणी हो दरिसन वेदनी, वली चुथु अंतराय, सागर कोडा हो कोडी त्रीसनी, अनुक्रमई स्थिति कहिवाय. सुणिसुणि० 63 मोहनी मोहिउ रे एह जि जीवडु, सत्तिरि कोडा हो कोडि, सागर कोडा हो कोडी वीसनी, नामि गोत्रि हो जोडि. सुणि सुणि० 64 तेत्रीस सागर आउखा तणी, स्थिति उत्कृष्टी हो जाणि, वेदनीनी वली बार मुहुर्तनी, जहन्नपणई वखांणि. सुणि सुणि० 65 नाम तणी स्थिति आठ मुहुर्तनी, एह जि गोत्र- मान, सेसह पंचनी लहु जाणिज्यो, अंतमुहुत्त समान. सुणि सुणि० 66 / एणे कर्मे हो प्राणी रोलव्यु, आव्यु हुं तुह्म पासि, सेवक ऊपरि स्वामि कृपा करी, आपु सुक्खनिवास. सुणि सुणि० 67 सफल हुउ हविं दिन मझ आजून, भेटिया नयणा हो णंद, दरिसण दीठइ हो जिन(जग)पति तुह्म तणइ, मुज हुओ परमाणंद. सुणिसुणि० 68 (आर्या) श्रीमत्सोमगणव्योम-सोमः सर्वकलानिधिः / सूरिः श्रीसोमविमलो, भूयान्मे वंछितप्रदः (कलस) इय संति जिनवर नमित सुरनर कुमरगिरिवरमंडणो, श्रीसकलहर्षसूरिंद सुहकर सकलं दुक्खविहंडणो, वीनव्यु भगति भाव युगति सुणिअ अचिरानंदणो, श्रीलच्छिमूरति सीस जंपइ, देहि सुह मणनंदणो. इति भवस्थिति स्तवनं संपूर्णम् // श्रीः // छः // 70 C/o. 7, कृष्ण पार्क गगनविहार पासे, खानपुर अमदावाद-३८०००१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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