Book Title: Bhavsthiti Stavan Author(s): Kantilal B Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ 48 अनुसंधाम-२८ अर्ध पल्य नक्षत्रह लागि, तारानुं पल्य चउथइ भागि, नक्षत्रनी वली देवी तणुं, साधिक पा पल्योपम भj. तारानी देवीनुं कहिउ, पल्लट्ठम भाग साधिक लहिउं, चंद्रादिक देवदेवी हवई, जघन्य आयु केतुं अनुभवई. युगल च्यारि चंद्रादिक जेह, पल्य भाग चउथानु तेह, तारा देवदेवीना आय, पल्य भाग अट्ठम ते पाय, (तव चडीउ घण माण गजे - ए ढाल) हवि वैमानिक सुर कहुंय, कल्प प्रथम तिहां वार तु, पहिलइ दोइ सागर सुहम, जघन्य पल्योपम धार तु, बीजइ साधिक दोइ तणुं, जघन्य साधिक पल्य जाणि तु, त्रीजइ सागर सत्त हुइ, लघु सागर दोइ आणि तु. चउथइ साधिक सत्त तणुं, लघु वली साधिक दोइ तु, सागर एतां जांणिज्यो ए सुणु पंचम सुरलोइ तु, दस सागर लघु सत्त तिहां, छठुइ चऊदस माण तु, दस सागर लघु जाणीइ ए, सुणु सत्तम सुरठाण तु. सतर सागर लघु चऊद तणुं, हवि अट्ठम सुरथांन तु, अट्ठारस सागर तणुं य सतर सागर लघु मान तु, ओगणीस मइ कहिउं आ अट्ठार सागर लघुमान तु, दसमइ सागर वीस हुई लघु उगणीस समान तु. एकवीस सागर लहिअ एकादस सुर जेह तु, वीस सागर लघु जांणीइ उ, सुणु बारस सुर एह तु, तिहां सागर बावीसतुं अ, लघु सागर एकवीस तु, हवि नव ग्रैवेयक भणुं अ, सुणु पहिलइ त्रेवीस तु. बीजइ गुरु चउवीसनु अ, इंम नउमइ इगत्रीस तु, हवि लघु वीसथी गणुं ए, नुमइ सागर त्रीस तु, पंचानुत्तर सुर तणुं य, तेत्रीस सागर होइ तु, लघु सागर इगत्रीसनु अ विजयादिक चिहु जोइ तु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9