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श्री लक्ष्मीमूर्ति-विरचित भवस्थिति स्तवन
. सं. डॉ. कान्तिभाई बी. शाह
आ स्तवनना रचयिता श्री लक्ष्मीमूर्ति जैन साधु कवि छे. तेओ आचार्यश्री सकलहर्षसूरिना शिष्य छे. 'जै.गू.क.'मां जणाव्या प्रमाणे सकलहर्षसूरिने आचार्यपद सं. १५९७मां प्रदान थयुं हतुं. ते अनुसार आ कृतिना कर्ता श्री लक्ष्मीमूर्ति विक्रमनी १७मी सदीना पूर्वार्धना कवि ठरे छे.
आ कृतिनी जे हस्तप्रत उपलब्ध थई छे एमां एनी ओळख 'भवस्थिति स्तवन'ने नामे अपाई छे. पण १६मा तीर्थंकर श्री शान्तिनाथने विनंतीरूपे आ रचना थई होई आ कृति 'शान्तिनाथ स्तवन' एवा अपरनामे पण ओळखाई छे. 'जै.गू.क.'नी संवर्धित बीजी आवृत्ति (ई.स. १९८७)मां आ रचना अप्रकाशित तरीके दर्शावाई छे.
आ काव्य ७० कडी, छे, अने कविए एमां मुख्यत्वे दुहा अने चोपाई छन्द प्रयोज्या छे. ५८मी कडी 'वस्तु' छन्दमां छे तो ६९मी कडी रूपे आवतो श्लोक 'आर्या'मां छे. ५९ थी ६८ सुधीनी दस कडीओ राग मेवाडु-धन्यासीमां गीतरूपे प्रयोजाई छे. अने 'सुणि सुणि स्वामी हो मोरी वीनती, तुं प्रभु परम दयाल' ए गीतनी ध्रुवपंक्ति छे..
__ चार गतिमां भटकता जीवे जे अनन्तां भवभवान्तरो करवानां थाय छे ते पैकीना प्राप्त भवनुं जे आयुष्य जीव भोगवे छे ते एनी 'भवस्थिति' छे. नारकी, तिर्यंच, मनुष्य अने देव- ए चारेय गतिना जीवोनी भवस्थितिनुं अहीं संक्षिप्त वर्णन करवामां आव्युं छे. कृतिना अन्तमां, आ भवभवान्तरो अने जुदीजुदी भवस्थिति जे कर्मबन्धनी परिणति छे ए आठेय कर्मोना बन्धनो क्षय करी मुक्तिनुं उत्तम सुख आपवानी शान्तिनाथ प्रभुने विनंती करवामां आवी छे. 'कलश'नी अन्तिम कडीमां कर्तानाम अने गुरुनाम अपायां छे. हस्तप्रत-परिचय :
जे हस्तप्रत परथी कृतिनी वाचना तैयार करवामां आवी छे ते प्रत
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ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादनी छे. हस्तप्रत सूचिक्रमांक : ला.द.भेट सू. ४१५०२ छे. प्रतनां कुल पत्र २ छे. बीजा पत्र उपरनी छेल्ली बाजुए प्रस्तुत कृति त्रीजी लीटीए पूरी थया पछी अन्य बे नानी कृतिओ लखायेली छे.
१. शिवचंद कविकृत 'नेमिनाथ स्तवन', ५ कडीy. २. जयवंतसूरिकृत 'सीमंधर स्वामि लेख', ५ कडीनु.
प्रतना पानानी लंबाई २६.० से.मि. छे तथा पहोळाई ११. से.मि. छे. बन्ने बाजु २.० से.मि.नो हांसियो छे. हस्तप्रतना पत्रनी दरेक बाजुए १९/ २० लीटी छे. बीजा पत्रनी छेल्ली बाजुए १८ लीटी छे. एक लीटीमां घणुंखरूं ५८ अक्षरो छे.
प्रत सुवाच्य छे. अक्षरो मध्यम कदना एकधारा लखायेला छे. पडिमात्रा अने ऊभीमात्रा बन्नेनो उपयोग थयो छे.
___ कृतिना आरंभे भले मीढुं करायुं छे. पुष्पिकामां कृति 'भवस्थिति स्तवन'ने नामे ओळखावाई छे.
भवस्थिति स्तवन
(ढाल दूहानु) त्रिभुवनपति जिनपय नमी, संति जिणेसर राय, कर जोडी करुं वीनती, लही सहिगुरु सुपसाय. सवि संसारी जीव जे, बिहुं भेदे ते होई, पहिलु अव्यवहारीओ, वली व्यवहारी जोई. कर्म अनादि रोलव्या, जीव अनंता जाणि, दुःख अनंतां भोगवई, काल अनंत प्रमाणि. सास-ऊसासह एकमां, साढी सत्तर वार, एक क्षुल्लक भव आऊखइ, वली वली लहि अवतार. केवि तेह थानक थकी, कर्म तणा लही पार, नवि पांम्या नवि पांमसइ, पृथिव्यादिक अवतार.
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अनुसंधान-२८
कर्मराशि त्रूटइ थिकइ, हुआ व्यवहारी केवि, पृथिवी-पाणी-अगनि भव, वाउ वणस्सइ लेवि. विगल असन्नी सन्निआ, तिरि मणु-नारय-देव, संक्षेपि हवि एहनी, कहुं भवनी स्थिति हेव. भव पामी चिहुं माहिल्यु, निज भव केरुं आय, प्राणी पूरुं भोगवइ, ते भवस्थिति कहिवाय. गुरु-लहु बिहुं भेदे सुणु, ते भव-आउ विचार, जिण दरिसण विण जीवडई, जे लीधा अवतार.
(चुपई) भम्यु जीव भव कोडि अनंत, कर्म बहुल नवि पामइ अंत, वली मरइ वली वली अवतरइ, इणी परि चिहुंगति मांहि फिरइ.१० सुहम पंच थावरमां जाइ, गुरु-लहु अंतमुहत्तह आय, पज्जत्ता अपज्जत्ता जेह, गुरु-लहु अंतमुहुत्तह तेह. वरस सहस बावीस विचारि, बादर पृथिवीकाय मझारि, सात सहस जलमांहि रहइ, अगनिकाय दिन त्रिणि जि लहइ. १२ वरस सहस रहिउं त्रिण्णि प्रमाणि, बादर वाउकायमां जांणि, वणस्सई प्रत्येक मझारि, वरस सहस दस पुहचइ पारि. जघन्य आउ ए पंचह तणुं, एक जि अंतमुहत्तह भj, ए पांचइ अपज्जत्ता जाणि, गुरु-लहु अंतमुहुत्त वखाणि. १४ वली पृथिवी छ भेदे कही, मरुअ भूमि पहिलं तिहां लही, वरस सहस एकनी स्थिति हवइ, बीजी बार सहस अनुभवइ. १५ सुद्धा भूमि तेहनुं अभिधान, चऊद सहस वेलूनुं मान, सोल सहस मणसिल हरीयाल, वरस मानिइं ए जाणु काल. १६ अढार सहस वरसेका करी, आय पूरइ उत्कृष्टउं धरी, खर पृथिवी छठी वली कही, पर्वत पाहण सिला ते सही. १७
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वरस सहस बावीस एह तणी, स्थिति उत्कृष्टी प्रवचनि भणी, इम अकेकी कांइ भम्यु, काल असंख अनंतु गम्यु.
(ढाल) हवि बे दी तणुंअ आय, बार वरस प्रमाण, एगणा पन्नास, दिवस ते दी माण, चउरिंदी छम्मास, आय पंचिंदी जाणु, बिहुं भेदे असन्नी, सन्नी तिरियंच वखाणु. असन्नि जलचारी जीव मल्यादिक केरी, पूव्व कोडि एक स्थिति कही उत्कृष्ट भलेरी, थलचर तिरि असन्नी जेह मँई ऊपरि चालइ, वरस सहस चउरासी आय पूरुं इम माहलइ. खचर असन्त्री तिरिय पंखी पंखाला जेह, वरस सहस बिहुत्तिरि आय उत्कृष्ट तेह, उरपरिसर्प असन्नि जेह हईई करी हीडई, वरस सहस त्रिपन्न आय पूरी भव छंडई. भुजपरिसम्र असन्नी जेह नकुलादिक जाणउं, वरस बइतालीस सहस आय उत्कृष्ट अj, हविं सन्नी गर्भिज कहुं जलचारी केलं, उर-भुजचारी सर्प- पूव्व कोडि भलेलं. गर्भ चतुष्पद महिषी महिष वृषभादिक सोइ, सुहम पल्योपम वण्णि आय उत्कृष्ट होइ, गर्भज पखी तणुंय पल्य असंख्यातमु भाग, आय उत्कृष्टु तिरि तणुं बोल्युं लही लाग. बि-ति-चउरंगी असन्त्री सन्नि अपज्जत्ता केरी, गुरु-लहु अंतमुहुत्त एक स्थिति कहीय भलेरी, पज्जत्ता एहां तणी लहु एह ज मान, हवइं गर्भज मानुष तणुं सुणयो सावधान.
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णि पल्योपम सुहम आय उत्कृष्ट कहीइ, लहु एक अंतमुहुत्त मान आय पूरुं लहीइ, असन्नी अपजत्त होइ नहु होइ पजत्त, गुरु--लहु सरीखुं जाणिज्यो एक अंतमुहुत्त.
(दूहा)
मानुष सरीखा आऊखा, हस्त्यादिकनां होइ, तुरगादिक तिरियंचना भाग चउथइ ते जोइ.
छाली छगलादिक तणां, अठम भागई आय, गो- खर-महिषादिक सुणउ, पंचम भाग कहिवाय.
उष्ट्रादिक वली एहनां, पंचम भागई जाणि, सुणहादिकनां आउखां, दसमा भाग प्रमाणि जहिं जेहवां मानुष तणां, आय उत्कृष्टां होइ, तेह मान आदि करी, हस्त्यादिकनां जोइ.
पंचम आरइ आजनइ, वीसोत्तरसउ आय, सूत्रमति मानुष तणुं, एह थकी तिरि पाय.
भवि भवि भमतां जीवडई, बांध्युं नारक आय, नरग पहिलइ पुहुतु वली, तिहां सागर एक ठाय. वरस सहस दस लहु हुइ, हवई बीजइ कहुं जोइ, सागर त्रणि पूरा लहइ, लघु एक सागर होइ. आय उत्कृष्टुं लहि वली, त्रीजइ सागर सात, लघु सागर त्रिणि जांणीइ, चउथानी सुणउ वात.
दस सागर लघु सत्त तिहां, सतर सागर वली आय, पंचम नरगिं प्राणीउ, दस सागर लघु ठाय.
छठइ नरगिं नारकी, लहइ सागर बावीस, सतर सागर लघु जाणीइ, सुणु छेहिलि तेत्रीस.
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सागर बावीस हुइ लघु, सत्तम नारक ठामि, एणी पइरिं नारक भवि भम्यु, तारि तारि हविं स्वामि
(चुपई)
दान - सील - समकित आचरी, आय बंध्युं सुभ भावि करी, पाम्यु देव तणी गति सार, तेह तणा छिं च्यारि प्रकार. पहिलु भेद भवनपति तणउ, असुरादिक दस भेदे सुणउ, दक्षण उत्तर भेदे स्वामि, दोइ दोइ इंद्र अकेक ठामि. प्रथम चमरच्चानु धणी, एक सागर स्थिति कही तेह तणी, बलिचंचा स्वामीनुं कहिउं, सागर एक अधिकेरु लहिउ. शेष निकाय स्वामी जे सुण्या, दक्षिण उत्तर भेदे भण्या, धरणादिक दक्षिण नव तणुं, पल्य डुढ उत्कृष्टु भणुं. उत्तरनी पासाना जेह, भूतानंद प्रमुख नव तेह, पल्योपम देसूणां दोइ स्थिति एहवी उत्कृष्टी होइ.
चमर तणी स्त्रीनी स्थिति जाणि पल्योपम सादात्रिणि आणि, बलिचंचा- स्वामी नारिनी, पल्योपम साढाच्यारिनी.
अर्ध पल्य दक्षिण नव तणी, देवीनी स्थिति एहवी भणी, उत्तरना नवनी जे नारि, पल्य एक देसूण विचारि.
कुंड - नदी - द्रह - नगनइ विषइ, पल्योपम पूरइ आऊखइ, वसइ देवदेवी एह तणी, लक्ष्म्यादिक इच्छाचारिणी.
वरस सहस दस लहु जांणीइ, हवई व्यंतर सुरवर काणीइ, पल्योपम उत्कृष्टु आय, वरस सहस दस लहु कहिवाय. अर्ध पल्य पालइ व्यंतरी, हवइ ज्योतिष कहुं भावि करी, चंद्र तणु जाणुं सविवेक, लाख वरिस पल्योपम एक. सूर्य आय पल्योपम तणुं, वरस सहस अधिकेरुं भणुं, पल्य एक ग्रहनी स्थिति कही, एह अर्ध त्रिहुं स्त्रीनी लही.
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अनुसंधाम-२८
अर्ध पल्य नक्षत्रह लागि, तारानुं पल्य चउथइ भागि, नक्षत्रनी वली देवी तणुं, साधिक पा पल्योपम भj. तारानी देवीनुं कहिउ, पल्लट्ठम भाग साधिक लहिउं, चंद्रादिक देवदेवी हवई, जघन्य आयु केतुं अनुभवई. युगल च्यारि चंद्रादिक जेह, पल्य भाग चउथानु तेह, तारा देवदेवीना आय, पल्य भाग अट्ठम ते पाय,
(तव चडीउ घण माण गजे - ए ढाल) हवि वैमानिक सुर कहुंय, कल्प प्रथम तिहां वार तु, पहिलइ दोइ सागर सुहम, जघन्य पल्योपम धार तु, बीजइ साधिक दोइ तणुं, जघन्य साधिक पल्य जाणि तु, त्रीजइ सागर सत्त हुइ, लघु सागर दोइ आणि तु. चउथइ साधिक सत्त तणुं, लघु वली साधिक दोइ तु, सागर एतां जांणिज्यो ए सुणु पंचम सुरलोइ तु, दस सागर लघु सत्त तिहां, छठुइ चऊदस माण तु, दस सागर लघु जाणीइ ए, सुणु सत्तम सुरठाण तु. सतर सागर लघु चऊद तणुं, हवि अट्ठम सुरथांन तु, अट्ठारस सागर तणुं य सतर सागर लघु मान तु, ओगणीस मइ कहिउं आ अट्ठार सागर लघुमान तु, दसमइ सागर वीस हुई लघु उगणीस समान तु. एकवीस सागर लहिअ एकादस सुर जेह तु, वीस सागर लघु जांणीइ उ, सुणु बारस सुर एह तु, तिहां सागर बावीसतुं अ, लघु सागर एकवीस तु, हवि नव ग्रैवेयक भणुं अ, सुणु पहिलइ त्रेवीस तु. बीजइ गुरु चउवीसनु अ, इंम नउमइ इगत्रीस तु, हवि लघु वीसथी गणुं ए, नुमइ सागर त्रीस तु, पंचानुत्तर सुर तणुं य, तेत्रीस सागर होइ तु, लघु सागर इगत्रीसनु अ विजयादिक चिहु जोइ तु.
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बिहु भेदे देवी हुइ अ सौधर्मइ ईशानि तु, एक कुलवधू सरिखी, इतर वेश्या सरिखी मानि तु, सौधर्मइ कुलवहु तणुंअ, वेश्या सरिखी जेह तु, पल्य सात पंचासर्नु अ आय उत्कृष्टउं तेह तु. लघु एक पल्योपम कहिउं अ इंम ईशान मझारि तु, नव पल्य पंचावन तणुं अ अनुक्रमि हईडइ धारि तु, लघु साधिक एक पल्यनुं अ अहिं देवी उपपात तु, गति सहसार लगइ परि अ सुर केवल बहु सात तु. ५७
(वस्तु) इंणइ अनुकमि [इणइं] अनुक्रमि काल अस्संख, थावर चिहुं मांहिं वस्यु काले नंत वण कांइ जाणुं अ, विगल असन्नी संख पुण असंख तिरिय नरमांहिं आणुं अ, तेत्रीस सागर गुरुअ लहु वरस सहस दस मान, सुर नारक लहु सेसनई अंतमुहुत्त समान.
५८ (राग मेवाडु धन्यासी) एणी परि प्राणी हो काल अनादि तु, पामी चिहुं गति आय, नव नव वेसे हो रंगिसुं रम्यु, हवि पाम्या तुह्म पाय, सुणि सुणि स्वामी हो मोरी वीनती, तु प्रभु परम दयाल, बंधन छोडी हो आठइ कर्मनां, आपु सुक्ख विशाल.
सुणिसुणि० ५९ ज्ञानवरणी हो जाननई आवरइ, दरिसनी दरसन रोध, वेदनी दुखसुखनुं देवं करइ, मोहनी बोध संरोध. सुणिसुणि० ६० हडिनई सरिखां हो चिहु गतिनां दीइ, पंचम कर्म ते आय, नाम प्रभावि हो नरगादिक तणा, पामइ नवनवा काय. सुणिसुणि० ६१ उंचे-नीचे हो गोत्रे आंणीउ, आठमुं जे अंतराय, तेह प्रभावि हो एणइं प्राणीइं, दानादिक नवि थाइ. सुणिसुणि० ६२
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________________ 50 अनुसंधान-२८ ज्ञानावरणी हो दरिसन वेदनी, वली चुथु अंतराय, सागर कोडा हो कोडी त्रीसनी, अनुक्रमई स्थिति कहिवाय. सुणिसुणि० 63 मोहनी मोहिउ रे एह जि जीवडु, सत्तिरि कोडा हो कोडि, सागर कोडा हो कोडी वीसनी, नामि गोत्रि हो जोडि. सुणि सुणि० 64 तेत्रीस सागर आउखा तणी, स्थिति उत्कृष्टी हो जाणि, वेदनीनी वली बार मुहुर्तनी, जहन्नपणई वखांणि. सुणि सुणि० 65 नाम तणी स्थिति आठ मुहुर्तनी, एह जि गोत्र- मान, सेसह पंचनी लहु जाणिज्यो, अंतमुहुत्त समान. सुणि सुणि० 66 / एणे कर्मे हो प्राणी रोलव्यु, आव्यु हुं तुह्म पासि, सेवक ऊपरि स्वामि कृपा करी, आपु सुक्खनिवास. सुणि सुणि० 67 सफल हुउ हविं दिन मझ आजून, भेटिया नयणा हो णंद, दरिसण दीठइ हो जिन(जग)पति तुह्म तणइ, मुज हुओ परमाणंद. सुणिसुणि० 68 (आर्या) श्रीमत्सोमगणव्योम-सोमः सर्वकलानिधिः / सूरिः श्रीसोमविमलो, भूयान्मे वंछितप्रदः (कलस) इय संति जिनवर नमित सुरनर कुमरगिरिवरमंडणो, श्रीसकलहर्षसूरिंद सुहकर सकलं दुक्खविहंडणो, वीनव्यु भगति भाव युगति सुणिअ अचिरानंदणो, श्रीलच्छिमूरति सीस जंपइ, देहि सुह मणनंदणो. इति भवस्थिति स्तवनं संपूर्णम् // श्रीः // छः // 70 C/o. 7, कृष्ण पार्क गगनविहार पासे, खानपुर अमदावाद-३८०००१