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अनुसंधान-२८
कर्मराशि त्रूटइ थिकइ, हुआ व्यवहारी केवि, पृथिवी-पाणी-अगनि भव, वाउ वणस्सइ लेवि. विगल असन्नी सन्निआ, तिरि मणु-नारय-देव, संक्षेपि हवि एहनी, कहुं भवनी स्थिति हेव. भव पामी चिहुं माहिल्यु, निज भव केरुं आय, प्राणी पूरुं भोगवइ, ते भवस्थिति कहिवाय. गुरु-लहु बिहुं भेदे सुणु, ते भव-आउ विचार, जिण दरिसण विण जीवडई, जे लीधा अवतार.
(चुपई) भम्यु जीव भव कोडि अनंत, कर्म बहुल नवि पामइ अंत, वली मरइ वली वली अवतरइ, इणी परि चिहुंगति मांहि फिरइ.१० सुहम पंच थावरमां जाइ, गुरु-लहु अंतमुहत्तह आय, पज्जत्ता अपज्जत्ता जेह, गुरु-लहु अंतमुहुत्तह तेह. वरस सहस बावीस विचारि, बादर पृथिवीकाय मझारि, सात सहस जलमांहि रहइ, अगनिकाय दिन त्रिणि जि लहइ. १२ वरस सहस रहिउं त्रिण्णि प्रमाणि, बादर वाउकायमां जांणि, वणस्सई प्रत्येक मझारि, वरस सहस दस पुहचइ पारि. जघन्य आउ ए पंचह तणुं, एक जि अंतमुहत्तह भj, ए पांचइ अपज्जत्ता जाणि, गुरु-लहु अंतमुहुत्त वखाणि. १४ वली पृथिवी छ भेदे कही, मरुअ भूमि पहिलं तिहां लही, वरस सहस एकनी स्थिति हवइ, बीजी बार सहस अनुभवइ. १५ सुद्धा भूमि तेहनुं अभिधान, चऊद सहस वेलूनुं मान, सोल सहस मणसिल हरीयाल, वरस मानिइं ए जाणु काल. १६ अढार सहस वरसेका करी, आय पूरइ उत्कृष्टउं धरी, खर पृथिवी छठी वली कही, पर्वत पाहण सिला ते सही. १७
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