Book Title: Bhavsthiti Stavan
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ July-2004 ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादनी छे. हस्तप्रत सूचिक्रमांक : ला.द.भेट सू. ४१५०२ छे. प्रतनां कुल पत्र २ छे. बीजा पत्र उपरनी छेल्ली बाजुए प्रस्तुत कृति त्रीजी लीटीए पूरी थया पछी अन्य बे नानी कृतिओ लखायेली छे. १. शिवचंद कविकृत 'नेमिनाथ स्तवन', ५ कडीy. २. जयवंतसूरिकृत 'सीमंधर स्वामि लेख', ५ कडीनु. प्रतना पानानी लंबाई २६.० से.मि. छे तथा पहोळाई ११. से.मि. छे. बन्ने बाजु २.० से.मि.नो हांसियो छे. हस्तप्रतना पत्रनी दरेक बाजुए १९/ २० लीटी छे. बीजा पत्रनी छेल्ली बाजुए १८ लीटी छे. एक लीटीमां घणुंखरूं ५८ अक्षरो छे. प्रत सुवाच्य छे. अक्षरो मध्यम कदना एकधारा लखायेला छे. पडिमात्रा अने ऊभीमात्रा बन्नेनो उपयोग थयो छे. ___ कृतिना आरंभे भले मीढुं करायुं छे. पुष्पिकामां कृति 'भवस्थिति स्तवन'ने नामे ओळखावाई छे. भवस्थिति स्तवन (ढाल दूहानु) त्रिभुवनपति जिनपय नमी, संति जिणेसर राय, कर जोडी करुं वीनती, लही सहिगुरु सुपसाय. सवि संसारी जीव जे, बिहुं भेदे ते होई, पहिलु अव्यवहारीओ, वली व्यवहारी जोई. कर्म अनादि रोलव्या, जीव अनंता जाणि, दुःख अनंतां भोगवई, काल अनंत प्रमाणि. सास-ऊसासह एकमां, साढी सत्तर वार, एक क्षुल्लक भव आऊखइ, वली वली लहि अवतार. केवि तेह थानक थकी, कर्म तणा लही पार, नवि पांम्या नवि पांमसइ, पृथिव्यादिक अवतार. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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