Book Title: Bhagwati sutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 11
________________ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ यूनां त्वाहारकवर्जशरीरचतुष्टयं भवतीतिकृत्वाऽऽह-नवर 'जे पजत्तेत्यादि । 'एवं गन्मवकृतियावि अपजत्तगति वैक्रियाहारकशरीराभावादू गर्भव्युत्क्रान्तिका अप्यपर्याप्तका मनुष्यास्त्रिशरीरा एवेत्यर्थः ॥ 'जे अपज्जत्ता सुहमपुढवी-1 |त्यादिरिन्द्रियविशेषणश्चतुर्थों दण्डकः ४॥ 'जे अपज्जत्ता सुहमपुढवी'त्यादिरौदारिकादिशरीरस्पर्शादीन्द्रियविशेषणः। पश्चमः ५॥'जे अपज्जत्ता मुहुमपुढवी'त्यादि वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानविशेषणः षष्ठः ६॥ एवमौदारिकादिशरीरवर्णादि मावविशेषणः सप्तमः ७ ॥ इन्द्रियवर्णादिविशेषणोऽष्टमः ८॥ शरीरेन्द्रियवर्णादिविशेषणो नवम इति, अत एवाहDil एते नंव दण्डकाः ॥ | मीसापरिणया णं भैते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता ?, गोयमा! पंचविहा पण्णता, तंजहा-एगिदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया एगिदियमीसांपरिणयाणं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णता?, गोयमा ! एवं जहा पओगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया एवं मीसापरिणएहिवि नव दंडगा भाणियचा, तहेव |सवं निरवसेसं, नवरं अभिलावो मीसापरिणया भाणियत्वं, सेसं तं चेव, जाव जे पज्जत्ता सबट्ठसिद्धअणुत्तर जाव आययसंठाणपरिणयावि ॥ (सूत्रं ३११)॥ वीससापरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता ?, गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-वनपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया,जे ४. वनपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-कालवनपरिणया जाव सुकिल्लवन्नपरिणया, जे गंधपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सुब्भिगंधपरिणयावि दुब्भिगंधपरिणयावि, एवं जहा पन्नवणापदे तेहेव निरवसेसं RUSHKASESCALA Jain Education Internationa For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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