Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ प्राक्कथन कभी-कभी विद्वान् माने जाने वाले व्यक्ति भी कुछ ऐसे विचार व्यक्त कर डालते है जो सत्य तथा औचित्य की दृष्टि से सर्वथा अग्राह्य होते है। ऐसे असत्य तथा अनुपयुक्त विचारो की उत्पत्ति और अभिव्यक्ति का कारण चाहे कदाग्रह हो अथवा सबद्ध विषय की यथोचित जानकारी का अभाव, परतु ऐसे विचार विषैला प्रभाव डालते हैं और उनका निराकरण आवश्यक बन जाता है। श्री धर्मानद कौशाम्बीजी ने अपनी पुस्तक 'भगवान् बुद्ध' मे श्रमणशिरोमणि, अहिसा के अनन्य उपासक तथा प्रसारक, भगवान् महावीर पर रोगनिवृत्ति के लिए मासभक्षण का आरोप लगाया है। सर्वप्रमुख जैनागमो मे गिने जाने वाले श्री भगवती सूत्र के एक सूत्र को उन्होने आधार बनाया है। भगवान् ने अपने एक मुनि शिष्य श्री सिंह को कहा कि “तुम मेडिक नगर मे सेठ गृहपति की भार्या रेवती के घर जाओ और उनसे 'मज्जार कडए कुकुडमसए' (औषध रूप) ले आओ जो उन्होने अपने लिए बना रखा है।" भगवत् वचन मे प्रयुक्त इन शब्दो का 'बिल्ले द्वारा मारे गए मुर्गे का मास' ऐसा अमगत और असभाव्य अर्थ करके कौशाबीजी ने अनर्थ किया है। हर भाषा मे अनेकार्थ शब्द रहते है। दो शब्दो से मिलकर बने हुए शब्दो का अर्थ भी बहुन बार उन दोनो शब्दो के अर्थो से सर्वथा भिन्न होता है। सस्कृत तथा प्राकृत भाषा मे तो विशेषतया अनेकार्थता पाई जाती है। इसलिए विवेकशील विद्वान् किसी भी ग्रथ मे प्रयुक्त शब्दो का अर्थ या उनकी व्याख्या करते हुए इस बात का ध्यान रखेगा कि किस व्यक्ति ने, किसको, किस समय, किस परिस्थिति मे, किस निमित्त से, किस प्रसग पर और किसके सबध मे वह शब्द कहे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 200