Book Title: Bhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 13
________________ १० की सभाओ ने भी इस पुस्तक के विरोध मे प्रस्ताव पास कर योग्य अधिकारियों को भेजे | इस आन्दोलन का परिणाम मात्र इतना ही हुआ कि "उक्त पुस्तक दोबारा न छपवाने का तथा इन प्रकाशित सस्करणों में मास सम्बन्धी प्रकरण के साथ जैन विद्वानो के मान्य अर्थ को सूचित करनेवाला नोट लगवा देने का अकादमी ने स्वीकार किया परन्तु खेद का विषय यह है कि इस पुस्तक. का ग्यारह भाषाओ मे सर्वव्यापक प्रचार बराबर आज भी चालू है । भारत एक धर्म-प्रधान देश है, मात्र इतना ही नहीं, अपितु सत्य और अहिसा की जन्म भूमि है । इसी धर्म वसुन्धरा पर भारत की सर्वोच्च विभूति महान् अहिंसक, करुणा के प्रत्यक्ष अवतार, दीर्घ तपस्वी, महाश्रमण निर्ग्रथ तीर्थकर ( निग्गठ नायपुत्त ) भगवान् महावीर स्वामी ( जैना के चौबीसवे तीर्थकर ) का जन्म हुआ । इसी पवित्र भारत भूमि में उन्होने जगत् को सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह तथा स्याद्वाद आदि समिद्धान्तो को प्रदान किया । समस्त विश्व इस बात को स्वीकार करता है कि 'श्रमण भगवान् वर्द्धमान महावीर तथा उनके अनुयायी निग्रंथ जैन श्रमण मनसावाचा - कर्मणा अहिंसा के प्रतिपालक थे और उनके अनुयायी श्रमण एव श्रमणोपासक आज तक इसके प्रतिपालक है ।" ऐसा होते हुए भी ईस्वी सन् १८८४ मे यानि आज से ८० वर्ष पहले जर्मन विद्वान् डाक्टर हर्मन जैकोबी ने जैनागम "आचाराग सूत्र" के अपने अनुवाद में सूत्रगत मास आदि शब्दोवाले उल्लेखो का जो अर्थ किया था उस पर विद्वानो ने पर्याप्त ऊहापोह किया था । अनेक विद्वानों ने डाक्टर जैकोबी के मन्तव्यो के खडन रूप पुस्तिकाए भी लिखी थी जिसके परिणामस्वरूप डाक्टर जैकोबी को अपना मत परिवर्तन करना पडा । उन्होने अपने १४-२१९२८ ईसवी के पत्र में अपनी भूल स्वीकार की । उस पत्र का उल्लेख " हिस्ट्री आव कैनानिकल लिटरेचर आव जैनाज" पृष्ठ ११७-११८ में हीरालाल रसिकलाल कापडिया ने इस प्रकार किया है -

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