Book Title: Bhagvati Sutra Part 03
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 4
________________ | निवेदन । सम्पूर्ण जैन आगम साहित्य में भगवती सूत्र विशाल रत्नाकर है, जिसमें विविध रत्न समाये हुए हैं। जिनकी चर्चा प्रश्नोत्तर के माध्यम से इसमें की गई है। प्रस्तुत तृतीय भाग में सातवें और आठवें शतक का निरूपण हुआ है। प्रत्येक शतक में विषय सामग्री क्या है? इसका संक्षेप में यहाँ वर्णन किया गया है - शतक ७ - सातवें शतक में १० उद्देशक हैं, उनमें से पहले उद्देशक में आहारक और अनाहारक सम्बन्धी वर्णन है। दूसरे उद्देशक में विरति अर्थात् प्रत्याख्यान सम्बन्धी वर्णन है। तीसरे उद्देशक में वनस्पति आदि स्थावर जीवों का वर्णन है। चौथे उद्देशक में संसारी जीवों का वर्णन है। पांचवें उद्देशक में खेचर जीवों का वर्णन है। छठे उद्देशक में आयुष्य सम्बन्धी, सातवें उद्देशक में साधु आदि सम्बन्धी, आठवें उद्देशक में आयुष्य सम्बन्धी, नववे उद्देशक में असंवृत अर्थात् प्रमत्त-साधु आदि सम्बन्धी और दसवें उद्देशक में कालोदायी आदि अन्यतीर्थिक . सम्बन्धी वर्णन है। शतक ८ - आठवें शतक में १० उद्देशक हैं - १. पुद्गल के परिणाम के विषय में प्रथम उद्देशक है। २. आशीविष आदि के सम्बन्ध में दूसरा उद्देशक है। ३. वृक्षादि के सम्बन्ध में तीसरा उद्देशक है। ४. कायिकी आदि क्रियाओं के सम्बन्ध में चौथा उद्देशक है। ५. आजीविक के विषय में पाँचवां उद्देशक है। ६. प्रासुक दान आदि के विषय में छठा उद्देशक है। ७. अदत्तादान आदि के विषय में सातवाँ उद्देशक है। ८. प्रत्यनीक - गुर्वादि के द्वेषी विषयक आठवाँ उद्देशक है। ६. बन्ध-प्रयोग बन्ध आदि के विषय में नौवाँ उद्देशक है। १०. आराधना आदि के विषय में दसवाँ उद्देशक है। उक्त दोनों शतक एवं उद्देशकों की विशेष जानकारी के लिए पाठक बंधुओं को इस पुस्तक का पूर्ण रूपेण पारायण करना चाहिये। संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन में आदरणीय श्री जशवंतभाई शाह, मुम्बई निवासी का मुख्य सहयोग रहा है। आप एवं आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलादेनशाह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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