Book Title: Bhagvati Sutra Part 03 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 8
________________ पृष्ट १०९२ १०९५ १०९५ १११५ ܐܐܐ १२८४ १३१३ १३३६ १३९३ १४०१ १४१४ . १४२५ १४४१ १४९५ १५२८ पंक्ति १ Ε १२ १७ ११७१ ११९२ १२०७ १२०९ ८ १२१८ १८ १२२३ १४ १२२८ १६ १२३५ ७ १२३७ १२७१ १२७६ १२८३ Jain Education International २० १४ ६ १८ १० ७ ७ २३ १.३ १५ २६ ε १८ ८ अंतिम १ ६ २६ अशुद्ध 'वोच्तिण्णा' हाँ णिoगंथे उत्तरगुणप्रत्वाख्यान आमकल्याण धौर एयमाणत्तयं पहले पहले अठार कुद्वस्स शुद्धि-पत्र पट्टय रइयांचिदिय.... तियँच काय परिणत रुक्षस् पर्शपने इसी प्रकार मृषामनः प्रयोगपरिणत में भी कहना चाहिए। पओगपरिगए णो अपज्जत्तग़ा ऋतु में तमोकम्मं शरीर को उल्लंघन पुच्च व्यारार जीवितों + For Personal & Private Use Only शुद्ध 'वोच्छिण्णा' यहां णिग्गंथे उत्तरगुणप्रत्याख्यान आत्म कल्याण ओर एयमाणत्तियं पहले सण्णापट्ट मुयइ अठारह कुद्धस्स रइय पंचिदिय..... तियंच काय प्रयोगपरिणत रूक्ष- स्पर्शपने पगपरिणए णो अपज्जत्तगाणं ऋजु तवोकम्मं शरीर की. उल्लंघन षडुच्च व्यापार जीवितों की www.jainelibrary.orgPage Navigation
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