Book Title: Be Aprakat Stuti Tika
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ६६ अनुसन्धान-५६ सुत पारि० कुंअरसिंहेन निज भगिनी तूदा श्रेयोर्थं बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चन्द्रगच्छे नवाङ्गवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिसन्ताने श्रीमुनिचन्द्रसूरिभिः ॥ बीजी कृतिमां कविए अढी द्वीपमा रहेला भावार्हन्तोने नमस्कार कर्या छे. सामान्यजिनस्तुति ए रीते ओळखाती बीजी स्तुति करता कविए बन्ने कृतिमां शाश्वत अने अशाश्वत जिननी स्तुति करी छे. श्रुतनी आराधनारूप त्रीजी स्तुतिमां कविए परमात्मानी वाणीनी अद्भुत स्तुति करी छे. प्रथम कृतिमां कविए द्वादशाङ्गीने नदीनी उपमा सुन्दर रीते घटावी छे. टीकाकार श्रीए पण दरेक पदना अर्थो एटलीज सुन्दर रीते रजू कर्या छे. तो बीजी कृतिमां कविए नैयायिकोना तेमज साङ्ख्यमतना उच्छेदन करनारा पद मूकी परमात्मानी वाणीने वखाणी छे. अहीं पण टीकाकारश्रीए व्याख्यामां तेटलीज सरळ रीते पदार्थो खोल्या छे. जेमनी स्तुति करवाथी तेओ श्रीसंघना कार्योमां सदा सहाय करनारा थाय, उपद्रवो दूर करनारा थाय, शासननी शोभा वधारनारा थाय एवं विशेष प्रयोजन छे तेवा देवी-देवताओनी स्तुति करता कवि प्रथम कृतिमां शुक्र, चन्द्र, रवि, ब्रह्मशान्ति, अम्बिका आदि देवी देवतानी स्तुति करे छे. ज्यारे बीजी कृतिमां वर्धमानस्वामीनी अधिष्ठायिका सिद्धायिका देवीनी स्तुति करे छे. एकंदरे मूळ अने टीका बन्ने विद्वद्वर्गने वांचवा लायक छे. मूळकर्ता-टीकाकारनो परिचय : मूळ कविना कर्ता कोण छे तेनी कृतिमां कशी ज नोंध नथी. परंतु कृतिना शब्दो ज कृति कोइ प्राचीन कर्तानी हशे तेवू अनुमान करवा प्रेरे छे. टीकाकारश्री गुणविनयजी खरतरगच्छना एक समर्थ विद्वान छे. तेमणे प्रस्तुत स्तुतिनी टीका जिनचन्द्रसूरिनी प्रेरणाथी करी छे. तेम टीकाना मङ्गलाचरणमां जणाव्युं छे. नलदमयन्तीचम्पूकाव्य टीका जेवा केटलाय ग्रन्थोनुं तेमणे सर्जन कर्यु छे. तेमना विशेष परिचय माटे 'नलदमयन्ती चम्पू काव्य और गुणविनयजी एक अध्ययन' पुस्तक जोवा विद्वानोने विनंती. प्रत परिचय : लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृत विद्यामन्दिर ग्रन्थभण्डारमाथी प्राप्त थयेल ५ पत्रनी प्रस्तुत प्रत भेट विभाग नं. ३४७९नी छे. लेखनशैली जोता प्रायः १७मी शताब्धि आसपासनी ज हशे एम अनुमान थाय छे. पत्रनी

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