Book Title: Bar Bhavna
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ 18 अनुसन्धान ३५ पुदगल-द्रवकी रीति देखी सुख दुख सब मानिया चहुं गति चौरासी लख जोनि आपणा पद जानिया ॥ यह अपनो पद शुद्ध चेतनमांहि दिट्ट जु दीजीई अनादि नाटक नटत पुग्गल तासुं प्रीत न कीजीई ।।६।। दोहा ॥ एक दशा निज देखिके अप्पा लेहु पिछानि । नानारूप विकल्पना सो तुं परकी जांनि ||७|| बोलत मोलत सोवता थिर मोनें जागंत । आप सभावि एक पुनि जिति तिति अन नभंत |८|| हंस विचक्षणा हो विचार एकता आस जम्म ण किनि धर्यो हो मरणा को नहि पास । मरण किसकि न जम्मु धरिओ सुरग नरकें को गयो अनंत बल वीर्य सुक्ख जाके दुख कहि कि न सो गयो ।। निज सहजनंद सुजाव अपनें थिर सदा चिदगुण घणा धरि धांन जोया नहि रूप दोया जानि हंस विचक्षणा ॥९॥ दोहा ॥ अण अण सत्ता धरें अन्न अण परदेस । अन्न अन्न थिति मंडिया अन न अंन प्रवेस ॥१०॥ हंस सयानडा हो अप्पा अन्न हि जोय सव्व सहावई हो मलियो किसहिं न कोय नवि कोय मलियो किसही सेती एक खेत अवगाहिया परदेस पर करें नांहिं नियत लक्षण बांहिया सोभा बिराजित सो भूषित एक समें पयांनडा कोइ नांहि साहिब अउर सेवक हंस सयानडा ॥११॥ . दोहा ॥ निम्मल गति जिय अप्पनी जेहो जांनि अयास अयास छि जड जांनि तुंहु वेयए अप्प पयास ॥१२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8