Book Title: Bar Bhavna Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ 22 अनुसन्थान 35 बाहिर योगा परिणमन अंतरगति परमत्थ सो तिस पंडित जांण तुं ओर सवे अकयत्थ // 34 / / सुद्रव्य खेत्र सुकालसुं सो सभाव सम लीण सहज शक्ति परगट भइ आनन भासें दीन // 35|| गुण सत्ता के जांण ते सात भइ चहुअ ओर विनु जानें अॅसी हुति जित. तित लागत सोर // 36 / / सोर गयो चिहुं चोरको बिती निसा अपाण गुण सत्ताके जाणतें निरमल दृष्टि विहान // 37|| कर्म सुभाव उदय गत समें समरस लीन माखी भूत थित्या थकिं देखें ग्यांन प्रविण // 38 / / अकथ कहां[नी] ग्यांनकी कहण सुणण की नाहि आपही पे पाइई जब देखें घटमांहिं // 39 // इति बारभावना आत्मस्वरूपा लाभानंदजी कृतः // समाप्तः / कडी क्र. शब्द अर्थ प्रज्याव सम पर्याय सम्यक् धावमाता आत्मा महेलात/हवेली धाय अप्पा मोलत पयांनडा संबरो पयोगी/पयोग वत्थुसहाव संवर प्रयोगी/प्रयोग वस्तुस्वभावो धर्मः भय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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