Book Title: Bar Bhavna Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 16 मा . अनुसन्धान ३५ बार भावनाओ, तार्तिक स्वरूपवर्णन छे. कर्ताए प्रथम कडीथी सीधुं भावनानिरूपण ज आदरी दोधुं छे; आरम्भनी तथा अन्तनी प्रचलित औपचारिकताओमां तेओ पडता नथी. आ पण तेमनी नि:स्पृह उच्च भूमिका- सूचक छे... भाषा मारु-गूर्जर अथवा मारवाडीप्रधान हिन्दी छे. बे ज छन्दोनो उपयोग कर्यो छे : दुहो तथा छन्द. आ छन्द ते सम्भवत: कुण्डलिया होय तेवू मने लागे छे. चोक्कस तो जाणकारो कही शके. आनन्दघन-साहित्यना प्रेमीओ तथा अभ्यासीओने बराबर जाण छे के तेमनी भाषा केटली गहन-गम्भीर, मार्मिक अने अल्पाक्षरी होय छे. आपणे एम धारीए के बार भावना तो प्रसिद्ध विषय छे, तेने तो सुगमताथी समजी-उकेली शकाय, तो अवश्य थाप खाई जवाय तेवू छे. द्रव्यानुयोगना विषयने आ लघु कृतिमां तेमणे ठांसी ठांसीने एवो तो भरी दीधो छे के अभ्यासीओ निरन्तर ऊंडु मन्थन कर्या ज करे, अने तोय तत्त्वनो ताग मळे के ना मळे ! प्रसंगोपात्त, एक वात जणाववी अत्रे प्रस्तुत थई पडशे के 'गुजराती साहित्य कोश (मध्यकाल)' जेवा सन्दर्भ ग्रन्थमा 'लाभानन्द' नामक कविनुं अधिकरण ज नोंधायुं नथी. हा, 'आनन्दघन'ना अधिकरणमां, तेमनुं नाम 'लाभानन्द' होवानो उल्लेख जरूर छे, पण ते नामनुं जुदुं अधिकरण नथी. कांनी सर्व रचनाओ 'आनन्दघन' ए नामथी ज मळे छे, तेथी ज आम हशे एम मानी शकाय; साथे एम पण नक्की थाय के 'लाभानन्द' नामना अन्य एक पण कवि मध्यकालमां थवानुं नथी नोंधायु, तेथी पण आ रचना आनन्दघनजीनी ज छे एम सिद्ध थाय छे. आ रचनानी भाषा स्तवनो/पदोनी भाषा करतां वधु कठिन छे. बनारसीदास वगेरे अध्यात्मविदोए प्रयोजेली भाषा प्रायः आ प्रकारनी छे. तेथी ते प्रकारनी कृतिओ-भाषाना तज्ज्ञो ज आना शब्दार्थ पकडी शके. अने ते पकडाय तो ज यथार्थ पदच्छेद आदि थाय. अत्यारे तो यथामति नकल करी मूकी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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