Book Title: Bar Bhavna Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ फेबुआरी - 2006 19 हंसा निम्मला हो जाणहु अप्पसरीर रोग न व्यापें हो दुःख न दारिद पीर पीरा न व्यापें दुःख दारिद रोग निकट न आवहि ग्यांन दंसणस्यौं चरित्तह शुद्ध अप्पा भांवहि मल मूलधारी अति बिथारी जाति पुग्गल ति भला निज देह तेरी सुखह केरी जानि हंसा निम्मला ॥१३।। दुहा ॥ आश्रव बंध अप्पा नहि अप्पा केवल नांण जो इन भावें अनुसरें तो निम्मल होइ विहांण ॥१४|| केवल मल परि वंजियो जं हिसो चाहिअ णाय तिसो सबरस संचरें परें न कोइ जाय ॥१५॥ आश्रव एहुं जिया हो पुग्गल कौंण उपजाव सहि जहि होइ जिया हो ताकी सकति सुहाव सुभाव सक्ति सब तासु केरी देखि मूढो मान ए यह सकल रतना में जूं कीनी नांहि कोइ आन ए तिस भर्म बुद्ध सौ आपु अरुझें एक खेतहि वासओनादि काल विभाव ऐंसौं सोइ जांणि जियडे आश्रओ ॥१६॥ दोहा ॥ यहुं जिउ संवर अप्पणो अप्पा अप्प मुणेय । जो संवर पुग्गलतणो कुमतिरोध हवेय ॥१७॥ सुभाउ रूप जो दिढे हे जाणे गुण परिनाय । सो जिय संवर जोणि तुं अपणें पदें स नाय ॥१८॥ छन्द ।।. संवर एह जिया हो अपने पद हि विचारि जो परदव्व जिया हो ताकी नांहि संचार संचार नांहि परदरवकेरो पद हि आप विचारीइं पंडित गुण सौं भयौ परचौं मूढ दोष निवारइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8