Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_2
Author(s): Manekyashekharsuri
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ . ॥ अहम् ॥ आचार्यश्री विजयदानसूरीश्वरगुरुभ्यो नमः श्रीमद् माणेक्यशेखरसूरीश्वरविरचिता आवश्यकनियुक्तिदीपिका-द्वितीयो विभागः -~~- ~ अथ तृतीयं वन्दनाध्ययनम् अथ वन्दनाध्ययनं । प्राक् सामायिकदेष्टणां स्तव उक्तोऽत्र तु सामायिकगुणवतां सलिङ्गानां प्रतिपत्तिरुच्यते यथा । | 'सामाइए ठियस्स जहा तित्थगरा पुञ्जा' मान्याश्च तथा गणधरा इति । 'बंद' वंदणचिइकिइकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मंच। कायव्वं कस्स व केण, वावि काहे व कइखुत्तो॥१११०॥ ___ वन्दनं योगत्रयव्यापारेण नमनं १। चितिद्रव्यतो धर्मध्वजाद्यादानं भावतो रत्नत्रयादानं २। कृतिरावर्त्तादिकरणं ३। कर्मशब्दस्य प्रत्येकं योजनात् वन्दनस्य, चितौ सत्यां कृतेश्च कर्म वन्दनकर्म १, चितिकर्म २, कृतिकर्म ३ । पूजा Jain Education inte For Private & Personal Use Only INow.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 410