Book Title: Auppatiksutram
Author(s): Abhaydevsuri, Dronacharya,
Publisher: Agamoday Samiti
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औपपा
तिकम्
4545
जन्यो वस्तुविशेषः । 'घणकडियकडिच्छाए'त्ति अन्योऽन्यं शाखानुप्रवेशाद् बहलनिरन्तरच्छाय इत्यर्थः । 'महामेहणिकुरं- ४वनषण्डा० | बभूए'त्ति महामेघवृन्दकल्पः।
सू०३ ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंभमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अणुपुव्वसुजायरुइलवभावपरिणया एक्कखंधा अणेगसाला अणेगसाहप्पसाहविडिमा अणेगनरवामसुप्पसारिअअग्गेज्झघणविउलबहखंधा अच्छिद्दपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईअपत्ता निद्ध| यजरढपंडुपत्ता णवहरियभिसंतपत्तभारंधकारगंभीररिसणिज्जा उवणिग्गयणवतरुणपत्तपल्लवकोमलउज्जलचलंतकिसलयसुकुमालपवालसोहियवरंकुरग्गसिहरा णिचं कुसुमिया णिचं माइया णिचं लवइया णिचं थवइया णिच्चं गुलइया णिचं गोच्छिया णिचं जमलिया णिचं जुवलिया णिच्चं विणमिया णिचं पणमिया णिचं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमियसुविभत्तपिंडमंजरिवडिंसयधरा सुयबरहिणमयणसालकोइलकोहंगकभिंगारककोंडलकजीवंजीवकणंदीमुहकविलपिंगलक्खकारंडचक्कवायकलहंससारसअणेगसउणगणमिहुणविरइयसढुण्णइयमहुरसरणाइए सुरम्मे संपिंडियद्रियभमरमहुकरिपहकरपरिलिन्तमत्तछप्पयकुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंतगुंजंतदेसभागे अभंतरपुप्फफले बाहिरपतोच्छण्णे पत्तेहि य पुप्फेहि य उच्छण्णपडिवलिच्छण्णे साउफले निरोयए अकंटए णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगरम्मसोहिए विचित्तसुहकेउभूए वावीपुक्खरिणीदीहियासु य सुनिवेसिय रम्मजालहरए।
पच्छियजमल्या णिचं असमिया हिणवतर
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