Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 7
________________ आशीर्वचन 'अतुला तुला' संस्कृत भाषा की एक सजी-संवरी कृति है। इसका प्रारम्भ प्राकृत भाषा में है, किन्तु उसे आत्मनिवेदन की भूमिका पर प्रतिष्ठित मान लिया जाए तो असंस्कृत जैसा कुछ नहीं रहेगा। मुनि नथमलजी हमारे धर्म-संघ के विशिष्ट मेधावी सन्तों में अग्नेगावा हैं। राष्ट्रभाषा हिन्दी की भांति देवभाषा संस्कृत भी इनके अधिकार में है। श्रुतज्ञान की सफलता उपासना के परिणामस्वरूप संस्कृत में 'आशु कवित्व' जैसी दुर्लभ क्षमता इन्हें सहज उपलब्ध है। संस्कृत भाषा में मेरी अभिरुचि है। इस अभिरुचि की प्रेरणा से ही मैंने अनेक साधु-साध्वियों को इस क्षेत्र में निष्णात बनाने का स्वप्न देखा। मेरा स्वप्न फला। अनेक प्रतिभाएं प्रकाश में आयीं । प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिला और तेरापंथ संघ संस्कृत भाषा का विशेष केन्द्र बन गया। मुनि नथमलजी द्वारा विभिन्न प्रसंगों पर संस्कृत भाषा में आबद्ध और आशु कविता के निर्झर से प्रवाहमान काव्य-संकलन की प्रस्तुति संस्कृत साहित्य की सुखद उपलब्धि है। संस्कृत भाषाविद् और संस्कृतानुरागी सुधी पाठक 'अतुला तुला' के पठन-पाठन से अपनी प्रतिभा को नई स्फुरणा दें इसी शुभ-कामना के साथ... आचार्य तुलसी लाडनूं २०३२, फाल्गुन कृष्णा अष्टमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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