Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 11
________________ यह लेखा-जोखा व्यवहार का है । आत्मा की सन्निधि पाने के इच्छुक साधक में वह नहीं होता । वह चलता है अपनी गति से और फलता है अपनी मति से। . ____ मुनिश्री पुरुषार्थ के प्रतीक हैं । इनका पुरुषार्थ तीनों आराधनाओं में प्रखर हुआ है १. इन्होंने अपने ज्ञान को आत्मा से अनुबंधित कर ज्ञान की आराधना की। २. इन्होंने अपनी श्रद्धा को आत्मा में केन्द्रित कर दर्शन की आराधना की। ३. इन्होंने समस्त कर्म को आत्मा की परिक्रमा में प्रेरित कर चारित्र की आराधना की। ___ इस प्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना में अपना समूचा जीवन समर्पित कर स्वयं के साथ-साथ इन्होंने समूचे तेरापंथ संघ को लाभान्वित किया ___ इन रचनाओं में शाश्वतिक सत्य भरा है। अध्यात्म और जीवन-दर्शन का समन्वय उसका एक बिन्दु है। यह बिन्दु एक बिन्दु होकर भी सिन्धु-सा गहरा और विशाल है। अध्यात्म से हटकर हम इनकी रचनाओं की व्याख्या नहीं कर सकते। इन दो दशकों में मुनिश्री की पचास-साठ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । प्रकाशित साहित्य बहु-आयामी है। हिन्दी में आपने बहुत लिखा । संस्कृत में तीन ग्रन्थमुकुलम्, अश्रुवीणा और संबोधि-प्रकाशित हो चुके हैं और यह चौथा ग्रन्थ है। अनेक ग्रन्थ अप्रकाशित हैं। प्राकृत भाषा में अनेक स्फुट रचनाओं के अतिरिक्त 'तुलसी मञ्जरी' के नाम से प्राकृत भाषा का एक व्याकरण-ग्रन्थ रचा । वह भी अप्रकाशित है। वर्तमान में आचार्य तुलसी के वाचनाप्रमुखत्व में संचालित जैन आगम अनुसंधान कार्य के आप प्रधान निर्देशक और विवेचक हैं । आगम-ग्रन्थों के आधुनिक संपादन और विवेचन के लिए जैन जगत्, विशेषतः तेरापंथ संघ, आपकी सेवाओं को कभी नहीं भुला पाएगा। . चिरकाल से मेरी यह अभिलाषा थी कि मुनिश्री के स्फुट संस्कृत साहित्य का मैं अनुवाद करूं । आज मेरो यह अभिलाषा पूर्ण हुई है। इस कार्य में मैं कहां तक सफल हुआ हूं, यह पाठक ही बता पायेंगे। सरस्वती के वरद पुत्र की साहित्यिक उपलब्धियों का शत-शत अभिनन्दन । लाडनूं २०३२ फाल्गून मुनि दुलहराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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