Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 15
________________ लगातार घंटों तक मैं समस्या में उलझा रहा । फलतः थकान से चूर हो गया। उस समय मैं नगर के बाहर बगीचे में गया और थकान मिटाने के लिए कुछ श्लोक बनाए । उनमें से एक श्लोक यह है "आनन्दस्तव रोदनेऽपि सुकवे ! मे नास्ति तव्याकृती, दृ ष्टदार्शनिकस्य संप्रवदतो जाता समस्यामयी। . किं सत्यं त्वितिचिन्तया हतमतेः क्वानन्दवार्ता तव, तत् सत्यं मम यत्र नन्दति मनो नैका हि भूरावयोः ॥" दार्शनिक का प्रतिनिधित्व करते हुए मैंने कवि से कहा-'कविशेखर ! तुम्हारे रोने में भी आनन्द है और आनन्द की व्याख्या करने में भी मुझे आनन्द नहीं आता। मैं जैसे-जैसे आनन्द को समझने और उसकी व्याख्या करने का प्रयास करता हूं, वैसे-वैसे मेरी दृष्टि समस्याओं से भर जाती है !' कवि ने कहा-'दार्शनिक ! तुम इस बात में उलझ जाते हो कि सत्य क्या है । तुम्हारी बुद्धि उसी में लग जाती है । तुम्हारे लिए आनन्द की बात ही कहां?. किन्तु मेरा अपना सूत्र यह है कि जिसमें मन आनन्दित हो जाए, वही सत्य है । इससे मेरे लिए सर्वत्र आनन्द ही आनन्द है। दार्शनिक ! तुम्हारी और मेरी भूमिका एक नहीं है।' प्रस्तुत संकलन के सभी श्लोक सहज स्फुरणा से स्फूर्त नहीं है। आशुकवित्व में समस्या और विषय से प्रतिबद्ध होकर चला हूं। कुछ विद्वानों ने आश्चर्यभाव से, कुछ ने चमत्कारभाव से और कुछ ने परीक्षाभाव से भी समस्याएं दीं। इसलिए उनकी पूर्ति में कहीं-कहीं कविकर्म की अपेक्षा बौद्धिकता का योग अधिक है। विषयपूर्ति में छन्द की प्रतिबद्धता नहीं होती किन्तु समस्यापूर्ति में छन्द भी प्रतिबद्ध होता है। - कुछ रचनाएं स्वतंत्र अनुभूति के क्षणों में लिखी हुई हैं। उनके पीछे कोई घटना, प्रकृति का पर्यवेक्षण या कोई विशिष्ट प्रसंग नहीं है । उन रचनाओं को शुद्ध काव्य कहने की अपेक्षा दर्शन-संपुटित काव्य कहना अधिक संगत होगा। इस संकलन में अनेक क्षणों में रचित रचनाएं संकलित हैं। देश-काल के परिवर्तन के साथ उनकी भाषा, शैली और अभिव्यंजना में भी अन्तर है। आचार्यश्री तुलसी ने विभिन्न प्रदेशों की यात्राओं में आशुकवित्व को अधिक व्यापक बना दिया। अनेक आशुकविताएं सुरक्षित नहीं रह सकी । आचार्यश्री के प्रवचन के विशेष आयोजन होते । उनमें प्रायः आशुकवित्व का उपक्रम रहता । आचार्यश्री का प्रोत्साहन होता और लोगों की मांग । इसलिए यह स्वाभाविक ही था। बहुत सारे रात्रिकालीन आयोजनों में की हुई रचनाएं लिखी नहीं जातीं और सामान्यतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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