Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 07 08
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्व. आत्माराम जी महाराज के संबंध में प्रायः ऐसा कहा जाता है कि वह अपने व्याख्यान में ऐमा रंग जमाते भावोर्मियों की छटा थे ... कि श्रोताजन डोलने लगते बिखेरते थे प्रतिभा थी थे । उनमें विद्वता यी, और था अनन्य उत्साह; किंतु तदुपरांत, जैसा कि उनके ऐक घनिष्ट परिचित ने कहीं पर उल्लेख किया है, की उनके व्याख्यान में सामान्य मनुष्य कल्पना भी न कर सके ऐसी स्वर बद्धता की अस्पष्ट झकार, झनझनाहट व्याप्त होती थी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ एक समय की बात है । आत्माराम जी व्याख्यान समाप्त हुआ । महाराज को वंदन कर के बाद एक बिखरने लगे । किंतु एक श्रोता अपने स्थान पर ज्यों का त्यों बैठा रहा । उसके मुख पर अद्भुत आनंद और अपूर्व तृप्ति के भाव दृष्टिगोचर हो रहे थे । י For Private And Personal Use Only आखिर में सब चले गये । व्याख्यानकक्ष खाली हो गया तब उक्त सज्जन अपने स्थान से उठे और आहिस्ता-आहिस्ता महाराज जी के पास गए | श्रद्धेय महाराज जी ने ऐसे उत्कट सुर और संगीत की तालीम किससे ग्रहण की है, यह ज्ञात करने की अपनी आंतरिक इच्छा उन्होंने उनके समक्ष प्रदर्शित की । महाराज का श्रोतागण एक

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