Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 07 08
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसमें भी अत्यधिक महत्व की बात यह थी कि श्री आत्माराम जी महाराज एवं उनके सहचारियों ने श्रद्धालु समुदाय के समक्ष नैतिकता का उज्जवल आदर्श प्रस्तुत किया । उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था । उन्होंने अपनी बात महज लोगों का दिल बहलाने हेतु नहीं कही, अपितु उसे जीवन भे' कार्यान्वित कर शुद्ध आचार-विचार के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि सच्चा संयमी, तपस्वी, झानी पुरुष कैसा होता है | फलस्वरूप दांभिक वृत्ति एवं शिथिलाचार से त्रस्त जनसमुदाय ने ऐसे आदर्श पुरुष के शिष्य परिवार का मुक्तमन से सोत्साह स्वागत किया । समय के साथ शिथिलाचारियों का सामर्थ्य और शक्ति को -हास होता गया । वे नरम पड़ गए और संयम - भार्ग का जो क्षीण धारा रूक-रूक कर प्रवाहित थी वह उफनती सरिता का रूप धारण का पूरे वेग से बहने लगी | यदि हम यह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस समय श्री बुट्टराय जी महाराज का शिष्य परिवार एकाध क्षीण सरित् प्रवाह की तरह था । यतिवर्ग के सामर्थ्य रूपी रोडे और पत्थरोंने उसके प्रवाह के बीच में ही रोक रखा था । श्रीं बुट्टेराय जी महाराज द्वारा प्रवाहित कियोध्धार का सोता अनेकविध अंतराय और बाधाओ को कलबल से पीछे ठेलता अबाध गति से आगे बढ़ता गया । परिणामत: श्री बुट्टेराथ जी महाराज एव उनका समर्थ फिर भी शांत अशांत, तपस्वी फिर भी निरभिमानी झानी फिर भी स्पृहारहित शिष्य परिवार यतियों के आँख में खटकने लगा । श्री बुट्टेरायजी महाराज के तत्कालीन का वर्णन करते हुए उपरोक्त चरित्र के जी महाराज का भी गौरवपूर्ण शब्दों में है । उनके संबंध में निम्नांकित भावों प्रदर्शित कर उन्हें शिष्य-परिवार लेखक ने श्री आत्माराम उल्लेख कर स्मरण किया For Private And Personal Use Only

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