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इसमें भी अत्यधिक महत्व की बात यह थी कि श्री आत्माराम जी महाराज एवं उनके सहचारियों ने श्रद्धालु समुदाय के समक्ष नैतिकता का उज्जवल आदर्श प्रस्तुत किया । उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था । उन्होंने अपनी बात महज लोगों का दिल बहलाने हेतु नहीं कही, अपितु उसे जीवन भे' कार्यान्वित कर शुद्ध आचार-विचार के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि सच्चा संयमी, तपस्वी, झानी पुरुष कैसा होता है | फलस्वरूप दांभिक वृत्ति एवं शिथिलाचार से त्रस्त जनसमुदाय ने ऐसे आदर्श पुरुष के शिष्य परिवार का मुक्तमन से सोत्साह स्वागत किया । समय के साथ शिथिलाचारियों का सामर्थ्य और शक्ति को -हास होता गया । वे नरम पड़ गए और संयम - भार्ग का जो क्षीण धारा रूक-रूक कर प्रवाहित थी वह उफनती सरिता का रूप धारण का पूरे वेग से बहने लगी |
यदि हम यह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस समय श्री बुट्टराय जी महाराज का शिष्य परिवार एकाध क्षीण सरित् प्रवाह की तरह था । यतिवर्ग के सामर्थ्य रूपी रोडे और पत्थरोंने उसके प्रवाह के बीच में ही रोक रखा था । श्रीं बुट्टेराय जी महाराज द्वारा प्रवाहित कियोध्धार का सोता अनेकविध अंतराय और बाधाओ को कलबल से पीछे ठेलता अबाध गति से आगे बढ़ता गया । परिणामत: श्री बुट्टेराथ जी महाराज एव उनका समर्थ फिर भी शांत अशांत, तपस्वी फिर भी निरभिमानी झानी फिर भी स्पृहारहित शिष्य परिवार यतियों के आँख में खटकने लगा ।
श्री बुट्टेरायजी महाराज के तत्कालीन का वर्णन करते हुए उपरोक्त चरित्र के जी महाराज का भी गौरवपूर्ण शब्दों में है । उनके संबंध में निम्नांकित भावों प्रदर्शित कर उन्हें
शिष्य-परिवार
लेखक ने श्री आत्माराम उल्लेख कर स्मरण किया
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