Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ कामरु कुंदण दमण देशे जपें तोरो जापए, इण देश अविचल प्रबल प्रत पास प्रगट प्रतापए ॥२५ ॥ लाटने कर्णाट कन्नड मेदपाट मेवातए, वलि नाट धाट वैराट वागड वछ कछ कुसातए। स तिलंग गंग फिरंग देशे जपें तोरो जापए, इण देश० ॥ २६ ॥ वलि उड तोड सुगोड द्राविड चोट नट महाभोटए, पंचाल ने बंगाल बंग ससवर बब्बर कोटए । मुलतान मागध मगधदेशे जपें तोरो जापए, इण देश० ॥ २७ ॥ नमिआड लाड कुणाल कोसल बहुल जंगल जाणियें, खुरसाण रोम अइराक आरव तुरक बात बखाणियें । कुरु अच्छ मच्छ विदेह देशे जपें तोरो जापए, इण देश० ॥ २८ ॥ कासीय केरल अनें केकइ सूरसेन संडिलझए, गंधार गुजर गाडणे वडीयार गुंड विदर्भए । कणवीर ने सोविर देशे जपें तोरो जापउ, इण देश० ॥ २९ ॥ नेपाल नाहल अमल कुंतल अजल कजल देशए, प्रतकाल चिल्लल मलय सिंहजी सिंधू देश विशेसए । खस खान चीन सिलाण देशे जपें तोरो जापए, इण देश० ॥ ३० ॥ प्रत प्रबल प्रताप तात संताप निवारण, दश दिस देश विदेश भ्रमति भविक जण सुख कारण, रोग सोग सवि टलें मिलें मनवंछित भोगह । दोहग दु(:)ख दरिद दूर सवि टले विजोगह, स्वर्ग मृत्यु पातालमें त्रिहुं भवन प्रगटों सदा; पार्श्वनाथ प्रताप तुझ आफै अविचल संपदा ॥ ३१ ॥
छंद जाति-मरहटा चालि अविचल पद आपें थिरकरि थापे जगव्यापक जिनराज, उपद्रव सवि जाई सुरगुंण गाई वसि थाई जिनराज । दीपें परं दीपें रिपुनें जीपं दीपें जिम दिनराज, पदपंकज पूजें प्रभुना रिजें सीझें वंछित काज ॥३२ ॥
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