Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ શા અંતરીક પાર્ષજિન छंद जाति गीता मयमत्त मयंगल अतुल वलधर जास दरसण भजए, केसरीयसिंह अविद अनीहें मेह समवड गज्जए । विकराल काल कराल को सिंहनाद विमुक्कए, सुख धाम प्रभु तुंम नाम लेतां तेह सिंह न दूक्कए ॥ १७ ॥ गललाट करतो मद्द झरतो कोप करतो धावए, भय रोस रातो अधिक मातो अति उजातो आवए। घरहाट फोडें बंध तोडें मान मोडें विपतणू , तुम नाम ते गज अजा र्था(था)ये वसे आवे अतिघणू ॥ १८ ॥ रणमांहि सूरा भडें पूरा लोह चूरा चूरए, गजकुंभ भेदें सीस छेदें वहें लोहित पूरए । दल देखि कंपे दीन जंपें करें प्रबल पुकारए, तुम स्वामि नामे तिणे ठामें वरें जय जयकारए ॥ १९ ॥ भय आठ मोटा निपट खोटा [दुष्ट खोटा] जेम रोटा चूरीई, अश्वसेन धोटा तुझ प्रसादें मनमनोरथ पूरीई। महिमांहि महिमा वधे दिन दिन चंदने सूरज समो, जस जाप करतां ध्यान धरतां पार्श्वजिनवर ते नमो ॥ २० ॥ चाल छाया पडलं वालय वि का, आंख्यां तेज अधिक वलि आएँ। पन्नगपति प्रभुने परतापे, अविचल राज काज थिर थापें ॥ २१ ॥ पद्मावती परचो बहू पूरे, प्रभु प्रासाद संकट सवि चूरें। अलवत अलगी जाई दूरे, लखमी घर आवे भरपूरें ॥ २२ ॥ महिमंडल मोटो तुं देवह, चौसठ इंद करे तुज सेवह । त्रिभुवन ताहरूं तेज बिराजें, जस परताप जगत्रमें गाजें ॥ २३ ॥ केता देस कहूं वलि नामें, प्रभुनी कीरत जिन जिन ठांमें।। पुर पट्टण संवाहण गामें, सुणतां नाम भविक सुख पामें ॥ २४ ॥ छंद जाति द(देश नाम अंग वंग किलंग मरुधर मालवो मरहट्टए, मीर ने हम्मीर हव्वस सवालाख सोरठ(ह)ए । For Private And Personal Use Only

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