Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
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१६१
શા અંતરીક પાર્ષજિન
छंद जाति गीता मयमत्त मयंगल अतुल वलधर जास दरसण भजए, केसरीयसिंह अविद अनीहें मेह समवड गज्जए । विकराल काल कराल को सिंहनाद विमुक्कए, सुख धाम प्रभु तुंम नाम लेतां तेह सिंह न दूक्कए ॥ १७ ॥ गललाट करतो मद्द झरतो कोप करतो धावए, भय रोस रातो अधिक मातो अति उजातो आवए। घरहाट फोडें बंध तोडें मान मोडें विपतणू , तुम नाम ते गज अजा र्था(था)ये वसे आवे अतिघणू ॥ १८ ॥ रणमांहि सूरा भडें पूरा लोह चूरा चूरए, गजकुंभ भेदें सीस छेदें वहें लोहित पूरए । दल देखि कंपे दीन जंपें करें प्रबल पुकारए, तुम स्वामि नामे तिणे ठामें वरें जय जयकारए ॥ १९ ॥ भय आठ मोटा निपट खोटा [दुष्ट खोटा] जेम रोटा चूरीई, अश्वसेन धोटा तुझ प्रसादें मनमनोरथ पूरीई। महिमांहि महिमा वधे दिन दिन चंदने सूरज समो, जस जाप करतां ध्यान धरतां पार्श्वजिनवर ते नमो ॥ २० ॥
चाल छाया पडलं वालय वि का, आंख्यां तेज अधिक वलि आएँ। पन्नगपति प्रभुने परतापे, अविचल राज काज थिर थापें ॥ २१ ॥ पद्मावती परचो बहू पूरे, प्रभु प्रासाद संकट सवि चूरें। अलवत अलगी जाई दूरे, लखमी घर आवे भरपूरें ॥ २२ ॥ महिमंडल मोटो तुं देवह, चौसठ इंद करे तुज सेवह । त्रिभुवन ताहरूं तेज बिराजें, जस परताप जगत्रमें गाजें ॥ २३ ॥ केता देस कहूं वलि नामें, प्रभुनी कीरत जिन जिन ठांमें।। पुर पट्टण संवाहण गामें, सुणतां नाम भविक सुख पामें ॥ २४ ॥
छंद जाति द(देश नाम अंग वंग किलंग मरुधर मालवो मरहट्टए,
मीर ने हम्मीर हव्वस सवालाख सोरठ(ह)ए ।
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