Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી અંતરીક પાઉજિન છે तुं छे मुज नायक हुं तुज पायक लायक तुज समान, कुण छे जगमाहें सोंहें बांहें राखें आप समांन । तुहिज ते दीसे विसवाविसें होयडुं हीसे हेव, देखुं हुं नयणे जंपु वयणे निरमल गुण तुम देव ॥ ३३ ॥ सिंधूर सुंडाला मदमतवाला हुंदाला दरबार, झूले मनिगमतां रंगें र(म)ता उच्छालंता वार । तुरकी तेजाला आगल पाला झुंझाला तरवार, झालिने दौंडे होडा होडे जोडें बहू परिवार ॥३४ ॥ हयवर पाखरिया रथ जोतरिया घुघरना धमकार, सोवन चीतरीया नेजा धरिया परवरिया असवार । गज बैठा चालें रिपुमन साले माले लखमी सार, एहवि रिद्धिपांमें प्रभुने नामें सफल करे अवतार ॥ ३५ ॥ दोहा अवतार सार संसारमांहि, तेह तणो जांणीयें। धन कमाइं धरमथानक, जिणें लखमी माणिइं ॥ ३६॥ सुंदर रूप सुहामणू, श्रवण सूणी नरनारि । कोडि कर जोडि रहें, दरसणनें दरबार ॥३७॥ छंद जाति-रूपवर्णन-अर्द्धनाराच । प्रीयंगुवन्न निल तन्न देखि मन मोहए, सुनूर सुरनूरथै अधिक जोति सोहए । अमंद चंद वृंदथै कला पर दिप्पए, सुरिंद कोटि कोटिथै जिणंद जोर जीप्पए ॥ ३८ ॥ अमूल फूल बाण केकबाण तो न लग्गए, दुजोध क्रोध जोध वैर मान छोडि भग्गए। अदिन तुं सुदीनबंधु देहि मुख मग्गए, सरण्य जांण सामीके चरण्यकु विलग्गए ॥ ३९ ॥ सुजोति मोति जोतिथे सुदंत पंति दिप्पए, गुलाल लाल उष्ट(४) थै प्रवाल माल छिप्पए । सुवास सास वासथै कपूर पूर भज्जए, व(प) लंब लंब बाहूथै मृणाल नाल लज्जए ॥ ४० ॥ अनूप रूप देखतै जिणंदचंद पासए, पदारव्य(वि)द व्य(व)दथै कुपाप व्याप नासए। दरिद्रपुर चूरके [पपुरकै ] प्रपुर मोरि आसए, अनाथ नाथ देह हाथ कर सनाथ दासए ॥४१॥ कमठ हठ गंजनों कुकर्म मर्म भंजनो, जगजनाति रंजनों मद्रुम प्रभंजयो । कुमति मति मंजनो नयन युग्म खंजनो, जगत्रए अगंजनो सो जयों पार्श्व निरंजनो ॥ ४२ ॥ For Private And Personal Use Only

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