Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
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શ્રી અંતરીક પાઉજિન છે
तुं छे मुज नायक हुं तुज पायक लायक तुज समान, कुण छे जगमाहें सोंहें बांहें राखें आप समांन । तुहिज ते दीसे विसवाविसें होयडुं हीसे हेव, देखुं हुं नयणे जंपु वयणे निरमल गुण तुम देव ॥ ३३ ॥ सिंधूर सुंडाला मदमतवाला हुंदाला दरबार, झूले मनिगमतां रंगें र(म)ता उच्छालंता वार । तुरकी तेजाला आगल पाला झुंझाला तरवार, झालिने दौंडे होडा होडे जोडें बहू परिवार ॥३४ ॥ हयवर पाखरिया रथ जोतरिया घुघरना धमकार, सोवन चीतरीया नेजा धरिया परवरिया असवार । गज बैठा चालें रिपुमन साले माले लखमी सार, एहवि रिद्धिपांमें प्रभुने नामें सफल करे अवतार ॥ ३५ ॥
दोहा अवतार सार संसारमांहि, तेह तणो जांणीयें। धन कमाइं धरमथानक, जिणें लखमी माणिइं ॥ ३६॥ सुंदर रूप सुहामणू, श्रवण सूणी नरनारि । कोडि कर जोडि रहें, दरसणनें दरबार ॥३७॥
छंद जाति-रूपवर्णन-अर्द्धनाराच । प्रीयंगुवन्न निल तन्न देखि मन मोहए, सुनूर सुरनूरथै अधिक जोति सोहए । अमंद चंद वृंदथै कला पर दिप्पए, सुरिंद कोटि कोटिथै जिणंद जोर जीप्पए ॥ ३८ ॥ अमूल फूल बाण केकबाण तो न लग्गए, दुजोध क्रोध जोध वैर मान छोडि भग्गए। अदिन तुं सुदीनबंधु देहि मुख मग्गए, सरण्य जांण सामीके चरण्यकु विलग्गए ॥ ३९ ॥ सुजोति मोति जोतिथे सुदंत पंति दिप्पए, गुलाल लाल उष्ट(४) थै प्रवाल माल छिप्पए । सुवास सास वासथै कपूर पूर भज्जए, व(प) लंब लंब बाहूथै मृणाल नाल लज्जए ॥ ४० ॥ अनूप रूप देखतै जिणंदचंद पासए, पदारव्य(वि)द व्य(व)दथै कुपाप व्याप नासए। दरिद्रपुर चूरके [पपुरकै ] प्रपुर मोरि आसए, अनाथ नाथ देह हाथ कर सनाथ दासए ॥४१॥ कमठ हठ गंजनों कुकर्म मर्म भंजनो, जगजनाति रंजनों मद्रुम प्रभंजयो । कुमति मति मंजनो नयन युग्म खंजनो, जगत्रए अगंजनो सो जयों पार्श्व निरंजनो ॥ ४२ ॥
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