Book Title: Atmanand Prakash Pustak 011 Ank 02
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
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પ્રાણાતિપાત પાપસ્થાનક પદ
अनाथ जानवरोनी दया विवेक पूर्वक करवा इच्छता सुइ नाइ व्हेनोए श्री जीवदया ज्ञान प्रसारक फंसना व्यवस्थापकनी तेमज जीवदयाना हिमायती सुप्रसिद्ध मि. लाजशंकर जेवानी सलाह मेळवी गमे ते मांगलिक प्रसंगे खर्चवा धारेसा द्रव्यनो व्याजवी व्यय करवा लक्ष राख जोइए. केवळ यश कीर्तिनो बूखो लोभ नहिं राखतां दुःखी प्राणीयोनी थती कदर्थना मुळथी दूर करवा तन मन अने धनथी संगीन रीते उद्यम करबो जोइए. वळी बीजी आधुनिक प्रजाओ करतां आपली प्रजा केम पच्छात पडती जाय छे तेनां खरां कारणो शोधी काढी तेने उन्नत स्थितिमां प्राणवा घटता उपाय चोपथी सेवा जोइए. आपणामां जे कोइ माठा रीत रीवाजो घुसी गया
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ते बघाने र करवाने उत्तम रीत रीवाजने दाखल करवा आगवान लोकोए एकसंपीथी नारे भगीरथ प्रयत्न सेववो जोइए. मतलब के जीवदयाना हिमायती दरेके दरेके पोतपोताथी बनतो आत्मनोग प्रापी ( स्वार्थ त्याग कर ) दुःखी जीवोना दुःख निवारवा माटे एवां विवेकसर पगलां भरवां जोइए के जेथी स्व परनुं श्रेय सिद्ध इ शकेज. बाकीतो या चराचर जगतमां कोण जन्मतुं के मरतुं नथी ? जीवित मनुं लेखे गए उचित बे के जेमनुं हृदय सामानुं दुःख जोइ द्रवी जाय अने स्वबुद्धि-शक्ति अनुसार उचित रीते ते दुःखनुं निवारण करे छे.
इतिंशम्.
लेखक, मुनिमहाराज श्री कर्पूरविजयजी महाराज.
અઢાર માસસ્થાનક.
“ પહિલ· પ્રાણાતિપાત
'पाप स्थान, '
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४७
(राम-सोरठ )
પ્રાણી પાપસ્થાનક પદ્ધિતુ હિં‘સા ઢાળીએર શુદ્ધ ધર્મ વત્ત્વનું મિજ યા નિત્ય પાળીએરે.

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