Book Title: Aspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध-संस्थान के इतिहास में उसके संस्थापक, निर्माता और संरक्षक के रूप में स्वर्गीय लाला हरजसराय जी का नाम स्वणिम अक्षरों में अङ्कित किया जायेगा। यदि विद्याश्रम के अकादमीय रूपकार का श्रेय पण्डित सुखलाल जी संघवी को है तो उसे मूर्तरूप देने का श्रेय निस्सन्देह स्वर्गीय लाला जी को हो है। लाला हरजसरायजी की जीवन शैली की विशिष्टता उनकी निष्काम समाज सेवा में है। हम यह कह सकते हैं कि लाला जी ने एक सार्थक जीवन जिया। देश, समाज और धर्म के लिए उनका सारा जीवन समर्पित रहा। उर्दू शायर का यह कथन उन पर चरितार्थ होता है दूसरों को जिसने दुनिया में बनाया कामयाब । जिन्दगी उसकी है 'दानिश' उसका जीना है सफल । हँस के दुनिया में मरा और कोई रोके मरा । जिन्दगी पाई मगर उसने जो कुछ होके मरा । उन्होंने पार्श्वनाथ विद्याश्रम रूपी इस ज्ञानमन्दिर का कलश बनने की अपेक्षा नींव का पत्थर बनना ही पसन्द किया। यही कारण था कि वे नितान्त मूकभाव से समर्पित होकर ४० वर्ष तक अनवरत रूप से संस्था का कार्य करते रहे । वस्तुतः पार्श्वनाथ विद्याश्रम आज जो कुछ है वह उनकी सेवा निष्ठा और उनके सद्प्रयासों का ही परिणाम है । फिर भी उन्होंने इसे सदा हो समग्र जैन समाज का धरोहर माना। लगभग ४० वर्षों तक मन्त्री के रूप में उन्होंने निलिप्त भाव से संस्थान की सेवा की, फिर भी यश और अपने नाम के प्रचार-प्रसार को कामना से वे नितान्त निर्लिप्त रहे । जीवन के जिस क्षेत्र में उन्होंने कदम बढ़ाये हर क्षेत्र में सफलता ने उनके चरण चूमे हैं। उनका जीवन ऐसा जीवन था जिसके सम्बन्ध में एक उर्दू शायर कहता है मरना जीना एक है, जिनको जरा भी ज्ञान है। वह उधर का मर्तबा, यह इधर की शान है ।। वैसे तो उनके जीवन की अनेक विशिष्टतायें हैं, किन्तु समाजसेवा के क्षेत्र में जितनी निर्मल एवं निर्विवाद छवि स्वर्गीय लाला जी की रही, वह आज के युग में दुर्लभ है। लाला जी के मन में भी कभी यह विचार नहीं आया कि कोई उनकी सेवा का यथोचित मूल्यांकन करे। जब तक वे जीवित रहे सम्भवतः किसी में साहस भी नहीं था कि उनके समक्ष इस प्रकार का प्रस्ताव रख सके, अधिक क्या अपने जीवनकाल में उन्होंने संस्थान में अपना चित्र भी नहीं लगने दिया। यद्यपि उनकी अस्वस्थता की दशा में मैंने उनके सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन की योजना बनायी, किन्तु दुर्भाग्यवश हम उनके जीवन काल में इसे साकार नहीं कर सके । आज उनके स्वर्गवास के पश्चात् उनकी स्मृति में इस ग्रन्थ का प्रकाशन कर रहे हैं। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान की बहुत दिनों से योजना थी कि वह जैन विद्या के स्तरीय शोध-लेखों से युक्त 'श्रमण' के शोध-विशेषाङ्क प्रकाशित करके समाजसेवियों एवं जैन विद्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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