Book Title: Ashta Pahud
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ २६८ कुदकुद-भारता परिग्रहरहितको ही निर्दोष साधु माना गया है।।१९।। पंचमहव्वयजुत्तो, तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई। णिग्गंथमोक्खमग्गो, सो होदि हु वंदणिज्जो य।।२०।। जो मुनि पाँच महाव्रतसे युक्त और तीन गुप्तियोंसे सहित है वही संयमी होता है। वही निग्रंथ मोक्षमार्ग है और वही वंदना करनेके योग्य है।।२०।। दुइयं च उत्तलिंगं, उक्किट्ठ अवरसावयाणं च। भिक्खं भमेइ पत्ते, समिदीभासेण मोणेण।।२१।। दूसरा लिंग ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट श्रावकोंका है जो भिक्षाके लिए भाषा समिति अथवा मौनपूर्वक भ्रमण करते हैं और पात्रमें भोजन करते हैं।।२१।। लिंगं इत्थीण हवदि, भुंजइ पिंडं सु एयकालम्मि। अज्जिय वि एकवत्था, वत्थावरणेण भुंजेइ।।२२।। तीसरा लिंग स्त्रियोंका अर्थात् क्षुल्लिकाओंका है। वे दिनमें एक ही बार भोजन करती हैं। आर्यिका एक ही वस्त्र रखती हैं और वस्त्र सहित ही भोजन करती हैं।।२२।। णवि सिज्झइ वत्थधरो, जिणसासणे जइवि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो, सेसा उम्मग्गया सव्वे ।।२३।। जिनशासनमें ऐसा कहा है कि वस्त्रधारी यदि तीर्थंकर भी हो भी वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। एक नग्न वेष ही मोक्षमार्ग है, बाकी सब उन्मार्ग है -- मिथ्यामार्ग है।।२३।। लिगम्मि य इत्थीणं, थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु। भणिओ सुहमो काओ, तासिं कह होइ पव्वज्जा।।२४।। स्त्रियोंके योनि, स्तनोंका मध्य, नाभि तथा कांख आदि स्थानोंमें सूक्ष्म जीव कहे गये हैं अतः उनके प्रव्रज्या -- महाव्रतरूप दीक्षा कैसे हो सकती है? ।।२४।। जइ दंसणेण सुद्धा, उत्ता मग्गेण सावि संजुत्ता। घोरं चरिय चरित्तं, इत्थीसुण पव्वया भणिया।।२५।। स्त्रियोंमें यदि कोई सम्यग्दर्शनसे शुद्ध है तो वह भी मोक्षमार्गसे युक्त कही गयी है। वह यद्यपि घोर चरित्रका आचरण कर सकती है तो भी उसके मोक्षोपयोगी प्रव्रज्या नहीं कही गयी है। भावार्थ -- सम्यग्दृष्टि स्त्री सोलहवें स्वर्ग तक ही उत्पन्न हो सकती है, आगे नहीं। अतः उसके मोक्षमार्गोपयोगी दीक्षाका विधान नहीं है। हाँ, आर्यिकाका व्रत उन्हें प्राप्त होता है और उपचारसे वे महाव्रतकी

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