Book Title: Ashta Pahud
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ अष्टपाहुड 341 अरहंत भगवान्में शुभ भक्ति होना सम्यक्त्व है, यह सम्यक्त्व तत्त्वार्थश्रद्धानसे अत्यंत शुद्ध है और विषयोंसे विरक्त होना ही शील है। ये दोनों ही ज्ञान हैं, इनसे अतिरिक्त ज्ञान कैसा कहा गया है? __ भावार्थ -- सम्यक्त्व और शीलसे सहित जो ज्ञान है वही ज्ञान, ज्ञान है। इनसे रहित ज्ञान कैसा? अन्य मतोंमें ज्ञानको सिद्धिका कारण कहा गया है परंतु जिस ज्ञानके साथ सम्यक्त्व तथा शील नहीं है वह अज्ञान है, उस अज्ञानरूप ज्ञानसे मुक्ति नहीं हो सकती।।४०।। इस प्रकार कुंदकुंदाचार्य विरचित शीलप्राभृत समाप्त हुआ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85