Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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हिन्दी में रूपान्तरण किया है। हिन्दी भाषा आज जन भाषा है। गुजराती भाषा एक प्रान्तीय भाषा है, जो गुजरात प्रदेश तक ही सीमित है। विराट्ता की दृष्टि से प्रस्तुत उपन्यास को हिन्दी में प्रस्तुत कर मैंने उसे जनोपयोगी बनाने का कार्य किया है।
प्रस्तुत उपन्यास 'आर्य स्थूलभद्र और कोशा' की परिक्रमा को लेकर आगे बढ़ता है। वह कोशा कौन थी, इस जिज्ञासा में कहा जा सकता है
* वह कोशा मगध नगर की प्रसिद्ध नृत्यांगना थी। * वह रूप और यौवन की प्रतिमूर्ति थी। * वह पाटलीपुत्र की शोभा थी। * वह मां सुलेखा की प्रतिकृति थी। * वह महामंत्री शकडाल के ज्येष्ठ पुत्र स्थूलभद्र की प्रेयसी थी। * वह रथपति सुकेतु और महाकवि वररुचि की चिरकांक्षित किन्तु
अनुपलब्ध रूपसी थी। * वह चित्रलेखा की ज्येष्ठा भगिनी थी। * वह चित्रा की स्वामिनी थी। * वह सिंहगुफावासी पदच्युत मुनि की प्रेरणा थी। * वह मुक्तिपथ की ओर प्रयाण करने वाली थी।
उसी कोशा ने अपने रूप-लावण्य, भावभंगिमा, हाव-भावों के विलासजन्य अनेक प्रयत्नों से स्थूलभद्र को विकारी, कामासक्त और चंचल बनाने का भरसक प्रयास किया। किन्तु स्थूलभद्र की यह भोग पर त्याग की परम विजय थी कि वे षड्रस प्रणीत भोजन का आस्वादन लेने पर भी निर्विकार रहे। बारह वर्षों तक निरन्तर कोशा के अत्यन्त समीप रहने पर भी उन्होंने अपने चारित्र की अमल धवल चादर को बेदाग रखा और काजल की कोठरी में रहकर भी वे उस कालिमा से निकलकर चांदनी के समान धवल रहे। ये सारे ऐतिहासिक जीवन्त घटना-प्रसंग प्रस्तुत उपन्यास अपने में समेटे हुए है।
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