Book Title: Arddhamagadhi Bhasha ka Udbhav evam Vikas Author(s): Sagarmal Jain Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अर्धमागधी भाषा का उद्भव एवं विकास ___प्रो. सागरमल जैन भारतीय साहित्य के प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत, प्राकृत एवं पालि भाषा में पाये जाते हैं । वैदिक परम्परा का साहित्य विशेष रूप से वेद, उपनिषद आदि संस्कृत भाषा में निबद्ध है, किन्तु वेदों की संस्कृत आर्ष संस्कृत है, जिसकी प्राकृत एवं पालि से अधिक निकटता देखी जाती है । मूलतः संस्कृत एक संस्कारित भाषा है । उस युग में प्रचलित विविध बोलियों (डायलेक्ट्स) का संस्कार करके सभ्यजनों के पारस्परिक संवाद के लिए एक आदर्श साहित्यिक भाषा की रचना की गई, जो संस्कृत कहलायी । संस्कृत सभ्य वर्ग की भाषा बनी । भिन्न-भिन्न बोलियों को बोलने वाले सभ्य वर्ग के मध्य अपने विचारों के आदान-प्रदान का यही माध्यम थी । इस प्रकार संस्कृत भाषा की संरचना विभिन्न बोलियों के मध्य एक सामान्य आदर्श भाषा (Common Language) के रूप में हुई । उदाहरण के लिए आज भी उत्तर भारत के हिन्दीभाषी विविध क्षेत्रों में अपनी-अपनी बोलियों का अस्तित्व होते हुए भी उनके मध्य एक सामान्य भाषा के रूप में हिन्दी प्रचलित है, यही स्थिति प्राचीन काल में विभिन्न प्राकृत बोलियों के मध्य संस्कृत भाषा की थी। जैसे आज हिन्दीभाषी क्षेत्र में साहित्यिक हिन्दी और विभिन्न क्षेत्रीय बोलियाँ साथ-साथ अस्तित्व में है, उसी प्रकार उस युग में संस्कृत एवं विभिन्न प्राकृतें साथ-साथ अस्तित्व में रही हैं। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि मूलतः प्राकृतें बोलियाँ हैं और संस्कृत उनके संस्कार से निर्मित साहित्यिक भाषा है। भारत में बोलियों की अपेक्षा प्राकृतें और संयोजक संस्कारित साहित्यिक भाषा के रूप में संस्कृत प्राचीन है, इसमें किसी का वैमत्य नहीं है । प्राकृतें संस्कृत को अपभ्रष्ट करके बनी, यह एक भ्रान्त अवधारणा है ।। पुनः कालक्रम में इन क्षेत्रीय बोलियों या प्राकृतों ने भी साहित्यिक भाषा का स्वरूप ग्रहण किया । इसमें सर्वप्रथम अभिलेखीय प्राकृत अस्तित्व में आई । चूंकि अभी तक पठित अभिलेखों में अशोक के अभिलेख ही प्राचीनतम माने जाते हैं, - इनकी जो भाषा है वही अभिलेखीय प्राकृत है।Page Navigation
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