Book Title: Arddhamagadhi Bhasha ka Udbhav evam Vikas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ ९० अनुसन्धान ५० (२) अर्द्धमागधी के पश्चात् ही अस्तित्व में आई है । मेरी दृष्टि में क्षेत्रीय बोलियों की दृष्टि से प्राकृतें संस्कृत भाषा से प्राचीन हैं, किन्तु साहित्यिक भाषा के रूप में वे उससे परवर्ती हैं । संस्कृत भाषा चाहे वह आर्षग्रन्थों की भाषा रही हो या परवर्ती साहित्यिक ग्रन्थों की भाषा रही हो, वे व्याकरण के नियमों से बद्ध है और उनमें किसी सीमा तक एकरूपता है, जबकि प्राकृतें क्षेत्रीय बोलियों से उद्भूत होने के कारण बहुविध है । चाहे संस्कृत व्याकरण को आदर्श या मॉडल मानकर उनके व्याकरणों की संरचना हुई हो, फिर भी बहुविधता को बनाये रखा गया है, अतः विभिन्न प्राकृतों के शब्दरूपों में आंशिक समरूपता और आंशिक भिन्नता मिलती है । यहां यह ज्ञातव्य है - साहित्यिक प्राकृत ग्रन्थों की रचना पहले हुई और उनके शब्दरूपों को समझाने के लिये व्याकरण ग्रन्थ बाद में बने । कोई भी प्राकृत व्याकरण ५वीं -६ट्ठी शती से पूर्व का नहीं है । प्राकृतों के व्याकरण प्राकृत ग्रन्थों से परवर्ती काल के ही हैं । दूसरी बात यह है कि प्राकृत के शब्दरूपों को समझाने के लिए उनमें जो नियम बनाये गये वे संस्कृत के शब्दरूपों को आदर्श या मॉडल मानकर ही बनाये गये । अत: प्राकृत व्याकरणों में 'प्रकृति: संस्कृतम्' - इस सूत्र का अर्थ केवल इतना ही है कि इस प्राकृत के शब्दरूपों को समझाने का आधार संस्कृत है। जो लोग इस सूत्र के आधार पर यह अर्थ लगाते हैं कि संस्कृत से विकृत होकर या उससे प्राकृत का जन्म हुआ, वे भ्रान्ति में हैं। संस्कृत और प्राकृत शब्द ही इस बात के प्रमाण है कि कौन पूर्ववर्ती है । प्राकृतें पुराकालीन क्षेत्रीय बोलियाँ हैं और उनका संस्कार करके ही संस्कृत भाषा का विकास, मानवसभ्यता के विकास के साथ हुआ है । वैज्ञानिक दृष्टि से मानवसभ्यता कालक्रम में विकसित हुई है । अत: उसकी भाषा भी विकसित हुई है । ऐसा नहीं है कि आदिम मानव शुद्ध संस्कृत बोलता था और फिर उसके शब्दरूपों या उच्चारण में विकृति आकर प्राकृतें उत्पन्न हो गई । अतः प्राकृत व्याकरणों में जहां भी सामान्य प्राकृत के लिए 'प्रकृतिः संस्कृतम्' शब्द आया है - वह यही सूचित करता है कि संस्कृत को अथवा अन्य किसी प्राकृत को आदर्श या मॉडल मानकर उस व्याकरण की संरचना की गई है । इसी प्रकार विभिन्न

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11