Book Title: Aradhana Ganga Author(s): Ajaysagar Publisher: Sha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai View full book textPage 7
________________ चातुर्मास के पूर्व से ही हमारे परिवार की भावना थी कि यदि चातुर्मास बाद उपधान होते हो तो अवश्य बड़ा लाभ लेना, प्रथष्ट हमारे परम स्नेही मंडल शिरोमणी श्री चंद्रप्रभु जैन मंडल की भी पूज्यश्री को विजाती थी कि मंडल द्वारा संचालित श्री दक्षिण पावापुरी तीर्थ श्री एयरपोर्ट मंदिर में उपधान तप हो, पहले पूज्यश्री का रुकने का कार्यक्रम नहीं था. परंतु बाद में संयोग पलटने पक्ष पूज्यश्री ने उपधान में विरा देने हेतु हाँ अह दी, और देखते ही देखते उपधान की तैयाही प्रारंभ हो गई, उपधान तप के मुख्य सहयोगी बनने का लाभ हमारे परम सौभाग्य से हमें मिला. कुल ९२ तपस्वी उपधान में जुड़े उसमें से 99 पुण्यवान मोक्षमाला वाले जुड़े. इसी उपथान में हमारे परिवार से श्रीमती निर्मलादेवी यशवंतकुमार एवं कुमारी भाँचल यशवंतकुमार ने उपधान कर के खुद के जीवन और हमारे परिवार को धन्य बनाया है. पूज्य पिताजी की लंबे समय की प्रभु भक्तिमय आराधना उपयोगी संग्रह धराने वाली पुस्तिका प्रकाशित करवाने की भावना थी. उन्होंने पूज्यश्री से खुद की यह भावना दर्शाई. पूज्यश्री ने ऐसी पुस्तिका के संकलन-संपादन के कार्य को सम्हालने की हमें हर्ष अनुमति प्रदान की. और उसी का फल है कि उपधान तप मालारोपण के प्रसंग पर यह सुंदर आराधना पुस्तिका प्रकाशइत होने जा रही है. इस पुस्तक की एक सबसे बड़ी खासीयत यह है कि पूज्यश्रीने पंचसूत्र के प्रथम सूत्र का एकदम नई व भाववाडी शैली में अनुवाद कर संपादन किया है. भाराभा है भात्मार्थीयों के लिए यह पुस्तक एक पुष्टिदायक संबल का काम करेगी. हम आभारी है राष्ट्रसंत आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के, कि जिन्होंने पूज्यश्री को दक्षिण में चातुर्मासर कहने की अनुमति प्रदान कर हम पर असीम उपकार किया. हम प्रार्थना करते है कि पूज्य पंण्यास प्रवर श्री अजयसागरजी हम पर इसी तरह कृपा दृष्टि बनाए रखेंगे, और हमारी धर्मभावना में निरंतर वृद्धि कहते होंगे विश्वास है कि भाराधकों को यह "आराधना गंगा" पुस्तिका उनके कर्ममल धोने के लिए पावनकारी सिद्ध होगी. विनीत युकमीचंदजी मेधाजी खींवेसरा परिवारPage Navigation
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