Book Title: Aradhana
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 5
________________ आत्मा का निश्चित कल्याण है । श्रावक के लिए प्रतिदिन त्रिकाल जिनभक्ति जिनोपासना यानी जिनपूजा, दर्शन, वंदन, चैत्यवंदनादि एवं गुरुवंदन और सामायिक आदि का अनुष्ठान शुद्ध विधि तथा शुभ भाव पूर्वक करना आवश्यक है । ज्ञानियों का कथन है कि भावपूर्वक की गई ये क्रियाएँ भव का नाश करने वाली हैं । उपर्युक्त क्रियाओं के लिए यह पुस्तक भी उपयोगी एवं आधाररूप तथा उपर्युक्त आलंबनरूप सिद्ध होगी । इस उपयोगी पुस्तक के पुष्ठों में आगम सूत्रों के अभ्यासी, तप एवं शुद्ध क्रिया द्वारा उस श्रुतज्ञान को स्वजीवन में चरितार्थ करनेवाले पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज ने अभ्यासपूर्ण मननीय विवेचन प्रस्तुत किया है । विद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्र ही नहीं, किन्तु पढ़ने और समझने में समर्थ सभी व्यक्ति इन निर्वाणप्रद सूत्रों का गहन एवं गंभीर रहस्य समझ सकें, ऐसी शैली से आपने अर्थ और भावार्थ बहुत स्पष्ट किया है । इसके साथ साथ इसमें गुरुवंदन, चैत्यवंदन, सामायिक लेने और पारने की विधि, सामायिक का महत्त्व और फल पर प्रकाश डाला गया है । इन विषयों के अतिरिक्त इस पुस्तक में पूर्वाचार्यो द्वारा रचित भावपूर्ण स्तवन, चैत्यवंदन, सज्झाय, थोय और स्तुतियों का भी संकलन किया गया है । इस पुस्तक के प्रकाशन का एक विशेष उदेश्य है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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