Book Title: Apbhramsa Bhasha Baddha Vajrasami Charit Author(s): Ramnik Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ [ 491 सुणवि एउ वयणु जसु जम्म-काले जाईसरणु संपत्तु । पिय-पासि लेसु वउ धरीउ चित्त माइ लूणइ(?) रोअंतु ॥८!! हालरू हालरू बालपणे संजमु जिण धरिउ सुनंदा-नंदणु धणगिरि-कुल-मंडणु ॥ हालरू० वस्तु गोअर-चरी चलिउ धणगिरि, अज्ज-समिति संजुत्तु । सउणि जाणीउ भणइ सीहगिरि लेउ तम्हि सचित्तु अचित्तु ।।९।। हालरू० पत्त सुनंदा-भवण-मज्झम्मि, रोअंतउ उच्छंगि ठिठ, लेवि पुत्तु तसु प्रिय समप्पइ । करवि सक्खि नर-नारि-गण, हास-खिड्डि धणगिरि सु घिप्पइ । पिय-पासि आवीउ मुणवि, हसइ सु पमुइड बालु ॥ । संजम-सिरि-उकंठ-मणु, मोहराय-खयगालु ।। १० । हालरू० हासइं पुत्तु आपेविणु, देइ सा मुणिवर दाणु । साहु जं गहिउ तं मुअई न हु, अमुणंतीअ निहाणु ॥११॥ हालरू० लेवि मुणिवर पुत्त-वर-रयण, संपत्त सुह-गुरु-चलणि, भारु भणवि गुरु-हत्थि धारीउ । आणिउ इह किं वज्ज-वरु, तासु, रूवु लक्खणु निहालीउ ।। जिण-सासण एउ उदयगिरि, उग्गिसइ वर-भाणु । सावय-कुलि संगोवि करे, पालिज्जउ सु निहाणु ॥ १२ साहु चरित्त-पासाय-धर, मुक्क सो सावय-भवणि । रंगिहि धूअ वहूअ भलावए, आपण एउ तारण-तरणी ॥१३।। हालरू० सिट्ठि सुनंदा पुत्तु मग्गेइ, अलहंती रोअंत तर्हि, पाइ खीर पन्नहइ झरंतिहि । सव्वि वि महिला मिलवि तसु, कुणइ किच्चु न्हाणाइ भत्तिहिं ।। छव्विह-जीवह रक्खकरु, वड्ढइ वयर-कुमारु । तईय वरसि गुरु-आगमणि, किउ राउलि ववहारु ॥ १४|| हालरू० राउ बे पक्ख मेलवि भणए, मुझ पासि ल्हीऊ पूतु । तेडउ जणणीअ तउ जणकु, जसु पासि जाइ सो तासु पूतु ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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