Book Title: Apbhramsa Bhasha Baddha Vajrasami Charit
Author(s): Ramnik Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ [54] तीण उत्सवि भणइ पुर-लोउ, जिणसासणु जयवंतु परि वयरसामि जिण अत्थि गुणगिरि । हरिसिहि अंतेउरी-सहिउ नमइ राउ आवेई जिणहरि ॥ देसण सुणवि नरेसरह, हूउ पडिबोहु तुरंतु । तित्थ-पभावण ईणपरि, मुणउ सयलु गुणवंतु ॥५२॥ भो भविउ० एवमाईसु बहु देसि विहरेविणु, तित्थु पभावीऊ जिणवर । नाणि जाणीउ निअ-आउ आसन्नउं, सीख देअइ वयर सीस पवार] ॥५३।। भो भविउ० अणसणु लेउ गिरवर-उवरि पंचसय-सीस-संजुत्तु । वयरसामि सोभागि सव्वे वी, मरतई सङ मरंतु ॥५४॥ भो भविउ० चेलओ गामि भोलावीऊ मूको, तीण वि किउ अणसणु । सव्वि जिण-आण जिण-धम्मु आराहीउ कुणई दिअ-लोकि सुह-मरण-गमणू॥५५||भो भविउ० नाणि जाणीउ सीस वयर-संताणू तस्स दूर ट्ठिय दिन्नु सुयनाणु ॥ झाअओ अणुदिणु महापभावु जिणराज-सासणु । जिण पाविइं लहउ केवल-नाणू ॥५६॥ वयर-कप्पहुम-साख हूअ चिआरि | चंदु नायल्लु निवृत्ति विज्जाहरु ॥५७। झाअओ अणुदिणु० चंद-गच्छि देवभद्दसूरि दक्ख, फूरइ जिणप्रभसूरि समण-गुण-लक्ख । नाणि चरणि गुणि कित्ति समुद्रू देउ वयरसामि-चरिउ आणंदु ॥५८॥ झाअओ अणुदिणु० सोहग्ग-महानिहिणो गुरुणो सिरि-वयर-सामिणो चरिअं । तेरह-सोलुत्तरए रइयं सुह-कारणं जयउ ॥५९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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