Book Title: Apbhramsa Bhasha Baddha Vajrasami Charit
Author(s): Ramnik Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमगच्छीय आ.श्री जिनप्रभसूरि विरचित अपभ्रंश-भाषा-बद्ध वज्रस्वामी-चरित सं. रमणीक शाह ईस्वी. १३मी सदीना उत्तरार्धमां थई गयेला आगमगच्छीय आचार्य जिनप्रभसूरिए उत्तरकालीन अपभ्रंश भाषामां रचेली अनेक लघु कृतिओ पाटणना जैन ज्ञानभंडारनी ताडपत्रीय हस्तप्रतोमां संग्रहायेली मळे छे. एवी एक कृति 'वयरसामिचरिउ' (वज्रस्वामीचरित) अहीं प्रथमवार संपादित प्रकाशित थाय छे. __पाटणना संघवी पाटक भंडारनी नं. ३११नी ताडपत्रीय प्रतमा १७मी कृति 'वयरसामिचरिउ' पत्र १२४ थी १२९ सुधीमां लखायेली छे, ते परथी लगभग वीशेक वर्ष पूर्वे में करेली नकलना आधारे प्रस्तुत संपादन कर्यु छे. कृतिनी बीजी कोई हस्तप्रत मळती नथी. ___ आ. जिनप्रभसूरि आगमगच्छना आचार्य हता. तेमना गुरुनु नाम देवभद्रसूरि हतुं. आ देवभद्रसूरिए सं. १२५० (ई.स. ११९४) मां अंचलगच्छनो त्याग करी नवो आगम या त्रिस्तुतिक नामे ओळखातो गच्छ स्थाप्यो हतो. आ. जिनप्रभसूरिए प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन गूर्जर भाषामां धणी नानी नानी कृतिओ रची होवानुं जणाय छे. तेमनी कर्मभूमि गुजरात होय तेम लागे छे. तेमणे केटलीक कृतिओ शत्रुजयगिरि पर रहीने रची होवानी नोंध छे. तेमनी रचनाओमां केटलीक प्रकाशित थई चूकी छे. ज्यारे घणी हजु सुधी अप्रकाशित छे. तेमना जीवन विशे अन्य कंई सामग्री मळती नथी. प्रस्तुत काव्यमां सरळ अपभ्रंश भाषामां कविए श्रीवज्रस्वामीनुं जीवनचरित गुंथ्युं छे. भाषामां तत्कालीन गुजरातीनी प्रबळ असर ध्यान खेंचे छे. १. आ.जिनप्रभसूरि अने तेमनी कृतिओ माटे जुओ- संधिकाव्य-समुच्चय, संपा. र. म. शाह, प्रका. ला.द.भा.सं. विद्यामंदिर, अमदावाद, १९८०. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [48] सिरि-जिणपहसूरि-रइउ वयरसामि-चरित नमवि जिणवर निज्जियाणंग, छत्तीस-गुण-गण-पवर- सुगुरु-चलण पणमवि सुभाविहि, धम्मु जु जीवह दय-सहिउ सयल-सुक्ख-दायगु सहाविहि । चउविह संघ वि सुर-महिओ, मुत्ति-निअंबिणि-हारु । वयरसामि-सुचरिउ भणिसु, भवियण-मंगलकारु ॥१॥ अस्थि इह नयर-वरु तुंबवणु अवयंती-देस-मज्झारि । तहिं वसइ धणगिरि इभ्यपुत्तु तसु सुनंदा वर-नारि ॥२॥ तुम्हि निसुणउ भविक-जन, वयरसामि-चरित्तु ॥ जसु अट्ठावइ देव-भवे, गोअमि दिन्नु समत्तु ॥ तुम्हि० 1 [वस्तु] अन्न-दिवसिण नेह-पडिबद्ध, धणगिरि निय-पिअयम भणिय मुज्झ चित्तु भोग अमिल्हइ, पेक्खेविणु आरंभ घणु, निरय-तिरिय बहु दुक्ख सल्लइ । एउ निसुणेविणु वय-गहणि, मई सुंदरि मोकल्लि । जर-रक्खसि निय-बलि सहिअ, आवइ अज्जु कि कल्लि ||३|| तुम्हि० कर जोडवि सुनंदा भणए, आसा-लुद्धि अन्नाह । पुत्त-जम्मु पडखेसु प्रिय, सामिअ म करि अणाह ॥४॥ तुम्हि० पढम-जोवणि तासु वर-घरणि, गय-गामिणि ससहर-वयणि रूववंतु निअ-तणु वहंतीअ । मिग-लोअण पिअ-वयणि पिउ भणइ बालु करुणं रुअंतीअ । अग्गइ बंधवि वउ लइड, सामीअ तउं म-न लेसु । निअ-कुल-कमला-केलि-करु, पुत्त-जम्मु पडखेसु ॥५॥ तुम्हि० जणणीअ कुक्षि-सर-रायहंसो, देवलोगाउ ऊवन्नु ! तउ धणगिरि सुकलावि दीख, सीहगिरि--पासि पवन्नु ।।६।। तुम्हि० सुनंदा पसवए पुत्त-रयणु, रूव-लक्खण-संजुत्तु । सहीअ भणइ जइ जणकु हुंतु, जम्मूस्सवु कारिंतु ॥७॥ तुम्हि० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 491 सुणवि एउ वयणु जसु जम्म-काले जाईसरणु संपत्तु । पिय-पासि लेसु वउ धरीउ चित्त माइ लूणइ(?) रोअंतु ॥८!! हालरू हालरू बालपणे संजमु जिण धरिउ सुनंदा-नंदणु धणगिरि-कुल-मंडणु ॥ हालरू० वस्तु गोअर-चरी चलिउ धणगिरि, अज्ज-समिति संजुत्तु । सउणि जाणीउ भणइ सीहगिरि लेउ तम्हि सचित्तु अचित्तु ।।९।। हालरू० पत्त सुनंदा-भवण-मज्झम्मि, रोअंतउ उच्छंगि ठिठ, लेवि पुत्तु तसु प्रिय समप्पइ । करवि सक्खि नर-नारि-गण, हास-खिड्डि धणगिरि सु घिप्पइ । पिय-पासि आवीउ मुणवि, हसइ सु पमुइड बालु ॥ । संजम-सिरि-उकंठ-मणु, मोहराय-खयगालु ।। १० । हालरू० हासइं पुत्तु आपेविणु, देइ सा मुणिवर दाणु । साहु जं गहिउ तं मुअई न हु, अमुणंतीअ निहाणु ॥११॥ हालरू० लेवि मुणिवर पुत्त-वर-रयण, संपत्त सुह-गुरु-चलणि, भारु भणवि गुरु-हत्थि धारीउ । आणिउ इह किं वज्ज-वरु, तासु, रूवु लक्खणु निहालीउ ।। जिण-सासण एउ उदयगिरि, उग्गिसइ वर-भाणु । सावय-कुलि संगोवि करे, पालिज्जउ सु निहाणु ॥ १२ साहु चरित्त-पासाय-धर, मुक्क सो सावय-भवणि । रंगिहि धूअ वहूअ भलावए, आपण एउ तारण-तरणी ॥१३।। हालरू० सिट्ठि सुनंदा पुत्तु मग्गेइ, अलहंती रोअंत तर्हि, पाइ खीर पन्नहइ झरंतिहि । सव्वि वि महिला मिलवि तसु, कुणइ किच्चु न्हाणाइ भत्तिहिं ।। छव्विह-जीवह रक्खकरु, वड्ढइ वयर-कुमारु । तईय वरसि गुरु-आगमणि, किउ राउलि ववहारु ॥ १४|| हालरू० राउ बे पक्ख मेलवि भणए, मुझ पासि ल्हीऊ पूतु । तेडउ जणणीअ तउ जणकु, जसु पासि जाइ सो तासु पूतु ॥१५॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [50] सूर- उग्गमि सीहगिरि सुगुरु संपत्त यह भवणि, संघि सहीउ नर- वर नमंसिर । सुय - कीलावण णेग सउं, पत्त सुनंद बहु-लोअ दंसीअ ॥ वयर - कुमरु पिक्खेवि निवु बइसारइ उच्छंगि । भद्दे तिहूअण - मणहरणु, हक्कारिसु बहु-भंगि || १६ || हालरू० संधि सउं नरवर को विवादो, जो दूच्छी आधारु । प्रिययम- बंधवि मूक निब्भागिणी, आपिऊ पुतु मल्लारु || १७ || तं आवि-न वयरकुमार ! दूक्खिणी दुखु वीसारि पूत ! त आवि-न, माडिय हीअइ आधारु देवु । तउं आवि-न सुनंदा पभणए, आवि वाछ ! खेलावणां गवि । माइ - मणोरह पूरि हेव, हिअडए नेहु धरेवि ||१८|| तउं आवि-न, पसव - कालि जं दुहु सहइ, तं पि सयलु केवली मुणंतीअ 1 बालप्पणि सुउ लालतिय मंगल सयय करेइ । सो पुणु जणणीअ रत्ति दिणु दुक्ख - लक्खु परि देइ ||१९|| तउं० कवणि न पावीउ मणूअ- भवो, कवणि न पावीउ सुक्खु । पुत्तु सो सुपुरिसु सलहीअए जणणि जु जाणए दुक्खु ॥२०॥ तउं० दुक्खि पावइ जीवु थी - जम्मु दुहु बालीअ दुहु परणीअह, सहइ दुक्खु पीहर - विउत्ती । रति - दिवसु दुक्खिहिं गहीअ, करइ कम्मु पर- मुह जुअंती ॥ दुक्खु अवच्चइ लालतीअ, एगागिणी सहेइ । जणणी - जम्मु सुदुक्खमऊ, जिणवर वयणु कहेइ ||२१|| तउं० जर जिण - दीख तउं गहिअ मणु, पच्छए लेजि ता पूत । अम्मा-पिअरि जीवति वीरिं सा नवि गहिअ निरूत ||२२|| तउं० वच्छ ! जणणी दीण विलवंत । दोहरिगे तु ग्गिय रहि, बंधु वत्त निग्गुण निलक्खण । आवि पुत्त गुणगण - पवर, मरडं नाम वर- रूव - लक्खण ॥ इय विलवंतीअ नेह भरे, जइ नवि रक्ख करेसि । हिउं फुट्टवि सा मुइअ, पच्छा सर्वाणि सुणेसि ||२३|| तउं० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 51 ] सुनंदा - दुक्ख बहु दुक्खिर एउ पिक्खिर लोड रोवंतु । वयर - कुमरु मणि चितवए, नयणिहिं नीरु झरंतु ||२४|| तउ० माइ महीयलि तित्थु सुपसत्थु, जं मत्रि जिणवरिहि, गब्भवासि तिहु - नाणवंतिहि । कुमरतणि जो देव गुरु नमिठ नेव तित्थयर हुतिहि || ते वि कयन्नू सिरि मउड, जणणी-चलण नमंति ॥ तिहूअण - लच्छि निवासकर, विषय- धम्मु पयडंति ॥ २५ ॥ उं० राय बोलाविउ धणगिरि, पहु हक्कारि कुमारु । एह बे पक्ख पर वि पुण, लेसइ जं जगि सारु ||२६|| तउं० माइ मन्त्रवि संघु अवगणीउ, तसु मत्रिण सा मन्त्रिअ वि, जेण सज्ज वर - नाण-गुण-निहि । संघिहि मन्त्रिई जिण भणिई, तरइ जीवु संसार - जलनिहि ॥ इयचितवि मणु दिदु करवि, संघु पमाणु करेसु । जणणी पुणु मह नेह - वसे, लेसइ समणी- वेसु ॥२७॥ तउं० काऊण य रयहरणं, तस्स पमाणं तु धणगिरि - हत्थे | गहिऊण इमं सुंदर, लग्गसु जिणनाह - परमत्थे ॥ २८ ॥ जइ सि कयज्झवसाओ, धम्मज्झयमूसियं इमं वयर । गिन्ह लहुँ स्यहरणं, कम्मरय पवज्जणं धीर ॥ २९ ॥ तउ नरवइ - उच्छंग तुरि, ऊतरिउ वयरकुमारु । सिरि आरोविड रयहरणु, जणि किउ जयजयकारु ॥ ३० ॥ पिखि पिखि प्रियतम दलि सहिउ, नाठउ जाइ मोह-राउ । बलि कीजिसु तसु वयरकुमर, जिणि संघह किउ उच्छाहु । पिखि० जीतउं चारित महाराजि जसु, जणणि-तणइ ववहारे । सदागमि सदबोधि मंत्रि, समकत्ति कीअ अमारे ।। ३१ ।। पिखि० - पमुइउ संजमु सव्वविरह, अनु पाणि-दया संतोसु । नाण - लच्छि संवर वरिउ, केवलसिरि हुउ तोसु ||३२|| पिखि० यहिं पूइ सयल - संधु, मह - ऊसवि वसति पहुत्तु । सुनंदा वड लेउ सुगुरु- पासि, कीउ निअ कुलु जम्मु पवित्तु ॥ ३३॥ पिखि० Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [52] समणीअ वसई सिट्टि-घरि, गुरि मेल्हीउ कीउ विहारु । साहुणि पढती गार-अंग-सुङ, गिन्हइ वयर-कुमारु ॥३४॥ पिखि० अट्ठमइ वरसि जो गुरि सरिसो, नयरि ऊजेणि पहुत्तु ॥ देवि वेउव्वि नहगामिणी दिनी, परखीउ जसु चारित्तु ॥३५॥ भो भविओ तम्हि नमउ भाविहिं वयरसामि । जसु अणागत-चारित्तु पेखीउ, पणमीउ भद्दबाहु-सामि । भो भविओ रमीउ जु अप्पा-रामि । गामि गच्छंति गुरि मुणि भणिय, तम्ह देसए वायणा वयरु । धन्न ते सीस जे तह त्ति भणेविणु, मानिउं वयणु निय-गुरु ॥३६॥ भो भविओ० नाणु जं तु निअ-गुरु-पासे, तं गहिउ ऊजीणि पुणु पत्तु । भद्दगुत्त मूली पढिउ दस पूरव, तउ दसपुरि संपत्तु ।। ३७ ॥ भो भविओ० तत्थ जिणहरि सीहगिरि सुगुरि निअ पट्टि संठाविऊ, वयरसामि संपन्न सुअहरु । मिलिवि संघि देविहि विहीउ, गुरु-पमोइ ऊसवु मणोहरु । पंचसई परिवारि सउं, विहरइ पुहवि मुणिंदु ।। मिच्छ-तिमिर-निन्नासकरु, एउ अहिणवउ दिणिंदु ।।३८।। भो भविओ० अइसय-लद्धि-संपुन्न-निहि, जम्मि देसम्मि विहरेइ । वयरसामि सोभागि आवज्जीउ, लोअ संखिज्जु पणमेइ ।।३९।।भो भविउ० कुसुमपुरि नयरि पत्त, वयर-सामि सम्मुखो राउ आवेइ । देसण सुणवि अंतेउरी साहए, सूरि परमत्थु पयडेइ ॥४०॥ भो भविउ० सुणइ नरवरु बीअ-दिणि धम्मु, अंतेउर-पुर-वर-सहिओ भणइ, लोउ गुण रूवु नय हिउ मणु तेर्सि जाणेवि गुरु, कुणइ रूवु साहावि सुरहिउ, इत्थंतरि धण कोडि सउं, सिट्टि धूअ ढोएइ । पहु परणिसु मह पुत्ती, अन्नु पुरिसु न वरेइ ॥ ४१ ॥ भो भविउ० वयरसामि सोभा संपुत्र-निहि, जाअहिणवउ दिणि ।। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [53] विसय-सुक्खेहि जीअ णंत दुक्खई सहइ चउगईअ संसारि । संजमि पावए णंत सुक्खई, केवलि कहीं विचारि ॥ ४२ ॥ भो भविउ० सुणवि उवएसु बहु लोअ पडिबुद्धा, तीए पडिवन्नु चारित्तु । अमिय-सरिसेहिं क्यणेहि पणासीउ, कम्म-विसय-मिच्छत्तु ॥४३॥ भो भविउ० अन्न वरसि परिवारु भणइ, समण सीअंति दुभिक्खि । । देस-नगर-पुर-माग-भागा, गणिहिं लेसु सुभिक्खि ॥४४॥ भो भविउ० जेअ साहम्मि-वत्सल्लि बहु उज्जुआ, चरण-करण-सज्झाय । तित्थ-पभावग ते नर अक्खिय, आण कुणई जिणराय ॥४५॥ भो भविउ० तेहिं मनिउ नाहु अरहंतु अनु सह गुरु सिरि धम्मवरु, तरिउ तेहिं दुत्तर वि सायरु । थिर-सम्मत्त चरित्त-धर, पत्तु मुणवि जे कुणई आयरु ॥ साहम्मिय सुअ-भणिय-विहिं, जे वच्छल्लु कुणंति । धम्मु पयासिउ जिण-भणिउ, ते सिव-सुह पावंति ॥४६|| भो भविउ० इय चिंतवि पटि समण चडावीऊ, जाव गयणम्मि गच्छेइ । ता शिखा छेदिऊ भणइ सिज्झागरु, राखि पहु सीसु करेई ॥४७॥भो भविउ० सो चडावीउ गयण-तले जाइ सुभिक्खि पुरि नयरी ।। बुद्धोवासगु राउ अमाणए संघु जिण-पूअ निवारी ॥४८॥ भो भविउ० अह पभावग अट्ठ जिण भणिउ, पावयणी धम्मकही वाय लद्धि नेमित्ति तवसी अ । विज्जासिद्ध कई अहूअ दृढ़-समत्त सुअनाणि संसिअ ॥ अवमाणिय जिण-सासणह, जे उ विविक्ख करंति । सत्तिहिं हुंती तिज्ज नर, भव-सायरि निवडंति ॥४९॥ भो भविउ० इय सुमरवि गुरु गयणि चलिओ, नयरि माहेसरी पत्तु । कुसम मगीउ हिमवंत गिरे, सिरिदेवि दीवु आवंतु ॥५०|| भो भविउ० सहसपत्ते तीए आपीउ कमले कुंभ पुj घालेइ । गयण-तले नाचंति बहु देविहि, जिणवर-भुवणि आवेई 1॥५१||भो भविउ० Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [54] तीण उत्सवि भणइ पुर-लोउ, जिणसासणु जयवंतु परि वयरसामि जिण अत्थि गुणगिरि । हरिसिहि अंतेउरी-सहिउ नमइ राउ आवेई जिणहरि ॥ देसण सुणवि नरेसरह, हूउ पडिबोहु तुरंतु । तित्थ-पभावण ईणपरि, मुणउ सयलु गुणवंतु ॥५२॥ भो भविउ० एवमाईसु बहु देसि विहरेविणु, तित्थु पभावीऊ जिणवर । नाणि जाणीउ निअ-आउ आसन्नउं, सीख देअइ वयर सीस पवार] ॥५३।। भो भविउ० अणसणु लेउ गिरवर-उवरि पंचसय-सीस-संजुत्तु । वयरसामि सोभागि सव्वे वी, मरतई सङ मरंतु ॥५४॥ भो भविउ० चेलओ गामि भोलावीऊ मूको, तीण वि किउ अणसणु । सव्वि जिण-आण जिण-धम्मु आराहीउ कुणई दिअ-लोकि सुह-मरण-गमणू॥५५||भो भविउ० नाणि जाणीउ सीस वयर-संताणू तस्स दूर ट्ठिय दिन्नु सुयनाणु ॥ झाअओ अणुदिणु महापभावु जिणराज-सासणु । जिण पाविइं लहउ केवल-नाणू ॥५६॥ वयर-कप्पहुम-साख हूअ चिआरि | चंदु नायल्लु निवृत्ति विज्जाहरु ॥५७। झाअओ अणुदिणु० चंद-गच्छि देवभद्दसूरि दक्ख, फूरइ जिणप्रभसूरि समण-गुण-लक्ख । नाणि चरणि गुणि कित्ति समुद्रू देउ वयरसामि-चरिउ आणंदु ॥५८॥ झाअओ अणुदिणु० सोहग्ग-महानिहिणो गुरुणो सिरि-वयर-सामिणो चरिअं । तेरह-सोलुत्तरए रइयं सुह-कारणं जयउ ॥५९॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [55] जिम जिणेसरि थुणिइं मह पुत्तु सुअ केवलि गणहरि, पवरि नाण-लद्धि-संपुन्न गुणहरि, जह समत्ति चरित्ति थिरि दाणि सीलि तवि पुन्नु महाहरि, तह भवियण तं चिरु हवऊ, वयर सामि सु[च]रित्त / पढत गुणंत सुणंतह, संवेगु धरंत // 60 / / * * *