________________ [55] जिम जिणेसरि थुणिइं मह पुत्तु सुअ केवलि गणहरि, पवरि नाण-लद्धि-संपुन्न गुणहरि, जह समत्ति चरित्ति थिरि दाणि सीलि तवि पुन्नु महाहरि, तह भवियण तं चिरु हवऊ, वयर सामि सु[च]रित्त / पढत गुणंत सुणंतह, संवेगु धरंत // 60 / / * * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org