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सुनंदा - दुक्ख बहु दुक्खिर एउ पिक्खिर लोड रोवंतु । वयर - कुमरु मणि चितवए, नयणिहिं नीरु झरंतु ||२४|| तउ० माइ महीयलि तित्थु सुपसत्थु,
जं मत्रि जिणवरिहि, गब्भवासि तिहु - नाणवंतिहि । कुमरतणि जो देव गुरु नमिठ नेव तित्थयर हुतिहि || ते वि कयन्नू सिरि मउड, जणणी-चलण नमंति ॥ तिहूअण - लच्छि निवासकर, विषय- धम्मु पयडंति ॥ २५ ॥ उं० राय बोलाविउ धणगिरि, पहु हक्कारि कुमारु ।
एह
बे पक्ख पर वि पुण, लेसइ जं जगि सारु ||२६|| तउं० माइ मन्त्रवि संघु अवगणीउ,
तसु मत्रिण सा मन्त्रिअ वि, जेण सज्ज वर - नाण-गुण-निहि । संघिहि मन्त्रिई जिण भणिई, तरइ जीवु संसार - जलनिहि ॥ इयचितवि मणु दिदु करवि, संघु पमाणु करेसु । जणणी पुणु मह नेह - वसे, लेसइ समणी- वेसु ॥२७॥ तउं० काऊण य रयहरणं, तस्स पमाणं तु धणगिरि - हत्थे | गहिऊण इमं सुंदर, लग्गसु जिणनाह - परमत्थे ॥ २८ ॥ जइ सि कयज्झवसाओ, धम्मज्झयमूसियं इमं वयर । गिन्ह लहुँ स्यहरणं, कम्मरय पवज्जणं धीर ॥ २९ ॥ तउ नरवइ - उच्छंग तुरि, ऊतरिउ वयरकुमारु । सिरि आरोविड रयहरणु, जणि किउ जयजयकारु ॥ ३० ॥ पिखि पिखि प्रियतम दलि सहिउ, नाठउ जाइ मोह-राउ । बलि कीजिसु तसु वयरकुमर, जिणि संघह किउ उच्छाहु । पिखि० जीतउं चारित महाराजि जसु, जणणि-तणइ ववहारे ।
सदागमि सदबोधि मंत्रि, समकत्ति कीअ अमारे ।। ३१ ।। पिखि०
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पमुइउ संजमु सव्वविरह, अनु पाणि-दया संतोसु ।
नाण - लच्छि संवर वरिउ, केवलसिरि हुउ तोसु ||३२|| पिखि०
यहिं पूइ सयल - संधु, मह - ऊसवि वसति पहुत्तु ।
सुनंदा वड लेउ सुगुरु- पासि, कीउ निअ कुलु जम्मु पवित्तु ॥ ३३॥ पिखि०
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