Book Title: Apbhramsa Bhasha Baddha Vajrasami Charit
Author(s): Ramnik Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ [52] समणीअ वसई सिट्टि-घरि, गुरि मेल्हीउ कीउ विहारु । साहुणि पढती गार-अंग-सुङ, गिन्हइ वयर-कुमारु ॥३४॥ पिखि० अट्ठमइ वरसि जो गुरि सरिसो, नयरि ऊजेणि पहुत्तु ॥ देवि वेउव्वि नहगामिणी दिनी, परखीउ जसु चारित्तु ॥३५॥ भो भविओ तम्हि नमउ भाविहिं वयरसामि । जसु अणागत-चारित्तु पेखीउ, पणमीउ भद्दबाहु-सामि । भो भविओ रमीउ जु अप्पा-रामि । गामि गच्छंति गुरि मुणि भणिय, तम्ह देसए वायणा वयरु । धन्न ते सीस जे तह त्ति भणेविणु, मानिउं वयणु निय-गुरु ॥३६॥ भो भविओ० नाणु जं तु निअ-गुरु-पासे, तं गहिउ ऊजीणि पुणु पत्तु । भद्दगुत्त मूली पढिउ दस पूरव, तउ दसपुरि संपत्तु ।। ३७ ॥ भो भविओ० तत्थ जिणहरि सीहगिरि सुगुरि निअ पट्टि संठाविऊ, वयरसामि संपन्न सुअहरु । मिलिवि संघि देविहि विहीउ, गुरु-पमोइ ऊसवु मणोहरु । पंचसई परिवारि सउं, विहरइ पुहवि मुणिंदु ।। मिच्छ-तिमिर-निन्नासकरु, एउ अहिणवउ दिणिंदु ।।३८।। भो भविओ० अइसय-लद्धि-संपुन्न-निहि, जम्मि देसम्मि विहरेइ । वयरसामि सोभागि आवज्जीउ, लोअ संखिज्जु पणमेइ ।।३९।।भो भविउ० कुसुमपुरि नयरि पत्त, वयर-सामि सम्मुखो राउ आवेइ । देसण सुणवि अंतेउरी साहए, सूरि परमत्थु पयडेइ ॥४०॥ भो भविउ० सुणइ नरवरु बीअ-दिणि धम्मु, अंतेउर-पुर-वर-सहिओ भणइ, लोउ गुण रूवु नय हिउ मणु तेर्सि जाणेवि गुरु, कुणइ रूवु साहावि सुरहिउ, इत्थंतरि धण कोडि सउं, सिट्टि धूअ ढोएइ । पहु परणिसु मह पुत्ती, अन्नु पुरिसु न वरेइ ॥ ४१ ॥ भो भविउ० वयरसामि सोभा संपुत्र-निहि, जाअहिणवउ दिणि ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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