Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ निवेदन 'अनुसन्धान'ना पचासमा अंक माटे जेमने आमन्त्रण आपवामां आवेलं, तेमांना केटलाक विद्वज्जनोए पोतानां शोधपत्रो पाठवीने 'अनुसन्धान'नी यात्राने वधावी छे. ते शोधपत्रो पचासमा अंकना आ बीजा भागमां प्रकाशित करवामां आव्यां छे. जोई शकाशे के भारतना जेटला ज विदेशना विद्वानोए पण आ शोधयात्रामा रस दाखव्यो छे. आवो प्रोत्साहक प्रतिभाव आनन्दप्रद पण बने छे, अने 'अनुसन्धान'नी यात्राने बळ पण पूरुं पाडे छे. विशेषमां, आ पचासमो अंक - तेना बन्ने भाग - स्व. मुनिराज श्रीजम्बूविजयजीनी पुण्यस्मृतिमां समर्पित छे. एक विश्वविख्यात जैन संशोधक तरीके स्व. मुनिश्रीनी ख्याति आन्तर्राष्ट्रीय स्तरनी हती. तेमनी तीक्ष्ण शोध-दृष्टि अनन्यसामान्य हती. जैन साधु तरीकेनी अनेक पारम्परिक मर्यादाओनां पालन प्रत्ये वफादार छतां वैश्विक कक्षानां संशोधन-कार्यो तेओ करी शक्या हता, ते समग्र जैन जगत् माटे गौरव लेवा जेवी बावत गणी शकाय. आवा शोधक साधुपुरुषनी पुण्यस्मृतिमां अंक प्रगट करीने 'अनुसन्धान' पण गौरवान्वित बन्युं छे. 'अनुसन्धान'नी यात्रा वेगपूर्वक निरन्तर अने निरन्तराय चालती रहे एवी भावना सह - शी. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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