Book Title: Anusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 15
________________ जल जाइ थल उपनी वनमे कीयो वसाव (दोरी बांधेली पोथी) पहरण कसुंबल कंचूवा काजल अधीक बणाव (चीरमी - चोरमी ? ) ओक नारी नवरंगी चंगी गूणवंति ते गोरी मूरखें सेंती मूख न बोले माथे बांधी दोरी ओक नारी नवरंगी चंगी नव नाडा लटकावे मरदा आगल बाजी खेले वाही नार केवावे बालपने सबके मन भावे बडा भया कछु काम न आवे कहे दीया उसीका नाम कहो अरथ के छोडो गाम पथरसुतकी पूतली वनसूतको घरवास (ताकडी) (दीवो) जे जीयारे मन वसे ते तीयारे पास अनुसन्धान ५० (२) नवलख जाया नवलख पेट नवलख रमे वडला हेठ चीतवूं ओर जणुं काल पडे जद केता करु सरवर भरियो खूब जल सुन्दर बेठी पार सरवर सुको सुन्दर गइ सुरता करो विचार नानको नगर फूलको फगर सुपारीयारो सुकाल पानरो पडयो दुकाल धुर कारतीक फागण बीच जलरो लीजे बेह पीयू पधारो परदेशमे मोकल दीजो तेह अणी तीखी मूख वंकडा सुवा पंख जीसा पीयू पधारो परदेशमे लाइज्यो आप इसा सूको लकडो हे सखी में फल लागो दीठ खावे तो जीवे नही जीवे तो नीठनीठ चहुं नारी नर नीपजे चीहु नरे नारी होय हे नर होवे पाधरो गंज न सके कोय पांच पगे हाथी चले पथरवरणी काया इण गाथानो अरथ सुणायने पग उपाडो भाया अक नारी नवरंगी चंगी पहेरे नवरंगी साडी नाक फाड नकली घाली चारे चग उघाडी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only (तरवार) (तीड) (दीवो) (केरां) (कागल) (पानको बीडो) (बरछी) (दीन) (दिन?) (कासव) (सुइ) www.jainelibrary.org

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